SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 188 . मृत्यु की दस्तक संत कबीर ने भी अपने ढंग से कह दिया है - रहना नहीं देश बेगाना है। लेकिन न मरने वालों में वे स्वयं अपना नाम गिनाते हैं कि - एक कबीरा ना मरा जाको राम अधार / तो मरना, न मरना कुछ अपने वश की भी बात मालूम होती है, तभी भीष्म जैसे हो गए हैं जिनको इच्छा-मृत्यु का वरदान था। लेकिन मृत्यु उनकी भी अनिवार्य थी। महात्मा गांधी ने 125 वर्ष जीवित रहने की कामना की थी। वे जीवित रह सकते थे। लेकिन ऐसा समय आया कि तत्काल मौत की कामना करने लगे। इसके पीछे महत्त्वपूर्ण तथ्य छिपा हुआ है। यहाँ उल्लेखनीय है कि गीता आदि ग्रंथों में बताया गया है कि मनुष्य शरीर नहीं आत्मा है। आत्मा जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त है। शरीर तो वस्त्र की तरह है, पुराना हो गया तो बदलने का सुखद अनुभव होना चाहिए। संतों ने स्वेच्छा से शरीर त्याग किया है। क्योंकि पुराना कपड़ा चीथड़ा हो जाये तो वह शोभनीय नहीं है। एक शेर याद आ रहा है। गमे ज़माना जिसे मौत आप कहते हैं। हमें यह मौत न मिलती तो मर गए होते। यहाँ दो प्रकार की मौत दिखाई दे रही है। ज़माने के गम में जिन्होंने अपनी हड्डियाँ गलाने का निश्चय कर लिया, ज़माने के दुःख-दर्द को अपना दुःख-दर्द बना लिया उन्हें चैन कहाँ मिलता है। उसे भी लोग मौत ही मानते हैं। लेकिन स्वेच्छा से जिन्होंने ऐसी मौत को गले लगाया है, वे तो उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकते। इस शरीर के रहते हुए भी मृतक समान जीवन उनके लिए भार स्वरूप हो जायेगा। गांधी जी ने देख लिया कि वर्षों जो कंधे-सेकन्धा मिलाकर चलते आए, जिनका बहुत भरोसा किया था, वे सब धीरे-धीरे किनारा करते गए। फिर जीने का आनन्द जाता रहा। इसलिए उन्होंने प्रार्थना की - “हे ईश्वर! मुझे तत्काल उठा ले"। ऐसे महात्मा शरीर छूट जाने के बाद भी जीवित रहते हैं। गांधी जी ने अपने बारे में कहा था कि - “ऐसा नहीं है कि इस शरीर के छूट जाने के बाद मैं नहीं रहूँगा। मैं कब्र में से भी आवाज़ देता रहूँगा” | यह हम सबके चिन्तन की अपेक्षा रखने वाला कथन है। सांसारिक मनुष्य जाने-अनजाने अपनी मृत्यु का सार-भार करता रहता है। औलाद नहीं है तो दुःखी रहता है। जब वह नए लोगों के पैदा होने की इच्छा करता है, उसके लिए उद्योग भी करता है तो इसका क्या अभिप्राय हुआ? यही न कि वह जगह खाली करे जहाँ आने वाले सुखपूर्वक रह सकें। जितने लोग पैदा हुए अगर वे बराबर बने रहें तो न धरती पर रहने का स्थान होगा और न खाने को अन्न मिलेगा। फिर मरने पर रोने की क्या बात .
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy