________________ मृत्यु आध्यात्मिक दृष्टिकोण - मिनती मृत्यु क्या है? यह ध्रुव सत्य है कि शरीर क्षणभंगुर है, विनाशी है। जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित् होती है। जन्म-मृत्यु प्रकृति का नियम है। जीवन और मृत्यु एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे बचा नहीं जा सकता। मृत्यु जीवन का आधार है, नींव है। मृत्यु नहीं तो जीवन कहाँ? प्रश्न है - मृत्यु क्या है? क्या जीव के देह में उपस्थित जीवन और जीव का देह से निकल जाने को मृत्यु कहते हैं? या श्वास के आवागमन के अवरुद्ध हो जाने को ही मृत्यु कहते हैं? क्या जीवन और मृत्यु ही वास्तविकता का निर्माण व विनाश ही नहीं, ये संयोग का प्रकट होना व छिप जाना है? दरअसल, मृत्यु तो नींद है। जिस प्रकार हम गाढ़ी नींद में अपने शरीर एवं सम्पूर्ण संसार को एकदम भूल जाते हैं, जिसे हम “छोटी मृत्यु कहते हैं, उसी प्रकार मृत्यु को “लम्बी नींद" कह सकते हैं। संसार का विस्मरण ही मृत्यु है न कि चेतन सत्ता का अभाव। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार - वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।। जैसे मनुष्य फटे वस्त्र उतारकर नया वस्त्र पहनता है, वैसे ही जीव पुरानी देह त्यागकर नई देह का आश्रय लेता है। यह शाश्वत् सत्य है कि हम सब इस जन्म-मृत्यु की लहरों में हिचकोले खाते रहते हैं और खाते रहेंगे।