________________ मृत्यु - सच्ची या झूठी? 147 अगर मर जाये तो और भी खुशी मनाते हैं, भारी दावत देते हैं। यह बिरादरी है हिजड़ों की, नपुंसकों की, स्त्रैणों की या जनखों की। इन्हें कितनी बड़ी प्रसन्नता होती है जब इस कलंकपूर्ण निकम्मे जीवन से छुटकारा मिल जाता है। परिवार नियोजन में वे सबसे आगे रहते हैं। मुगलों और मुस्लिम बादशाहों के समय में तो इन्हें बड़ा आदर मिलता रहा। यह एक महान् अन्याय है कि उन्हें राजकीय प्रतिनिधित्व भी तो नहीं मिलता। या तो चाहिए कि इतने विकसित वैज्ञानिक और चिकित्सकीय उपलब्धियों के फलस्वरूप शल्यचिकित्सा या औषधोपचार की विकसित विधियों या आज की अति आधुनिक जीनशास्त्रीय विधियों का प्रयोग करके इनकी सहायता या चिकित्सा का प्रबन्ध करें, और नहीं तो इन्हें तीसरा लिंग मानकर राजकीय प्रतिनिधित्व प्रदान करें। यह सचमुच महान् अन्याय है, प्रकृति-प्रदत्त दोष के लिये इन्हें शारीरिक, सामाजिक व संवैधानिक सजा क्यों मिले? सारी जीवन-श्रृंखला की कर्म-कमाई माता-पिता की ऐसी सन्तान का सदा-सर्वदा के लिये कालवह प्रवाह समाप्त हो जाता है, सृष्टि के सतत् प्रयास सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं, जीनों की अनगिनत संख्या का प्रभाव निष्फल चला जाता है। क्या आज का इतना विकसित जीन सिद्धान्त इन निर्दोष लोगों पर सजा के गुनहगार होने को दोष मानकर स्वयं को लज्जित करने का जघन्य अपराध नहीं करता।