________________ मृत्यु सच्ची या झूठी? - विजय कुमार राय कथा है महाभारत की / यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा - “महाराज, इस संसार में, आपकी दृष्टि में, सर्वोपरि आश्चर्य क्या दिखता है?” “धर्मनन्दन ने तत्काल और बेखटक उत्तर दिया - हर मनुष्य जीवन भर हर जगह मृत्यु का दृश्य देखता ही रहता है, पर, यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि उसकी भी एक-न-एक दिन मृत्यु अवश्य होगी, उसे दृढ़ विश्वास रहता है कि वह मृत्युहीन है। मनुष्य जीवन में कितना बड़ा आश्चर्य है यह?" कितना बेढब बिडंबन और उपहास्यास्पद प्रसंग है कि अन्त में धर्मेन्द्र धर्माचार्य और धर्माधिकारी महाराज युधिष्ठिर ने अपनी विवश मानसिक असमर्थता का रोना रोते हुए भी स्वयं के अंतर्जगत् को नित्य और शेष हम सभी को अनित्य बताया। मृत्यु से मुक्ति की कोई आसान युक्ति भी तो नहीं बता पाये। आखिर जीवन है क्या? जीव की अपरिमित यात्रा। जब तक जीव चैतन्य और चक्षुप्रत्यक्ष दिखता है उसे सजीव कहते हैं। सजीव का प्रारंभिक छोर है जन्म और अंतिम सिरा है मृत्यु। दोनों छोरों के बीच जीता रहता है जीवन | चाहे जिससे पूछ लीजिए कि तुम्हारा जन्म कब हुआ था? वह तुरंत कह देगा कि मैं जानता कहाँ हूँ, मेरे जन्म के बारे में दूसरे लोग बताते हैं। पर उस पर भरोसा कहाँ करता है? मेरा अपना अनुभव तो है नहीं? जन्म हमारा और बताएँ और लोग? ठीक इसी तरह कोई अपना मरना भी नहीं जानता। औरों के कहने पर ही तो लोगों को मालूम होता है। तो क्या जन्म और मृत्यु दोनों ही झूठ हैं? हम जीते रहते हैं दो झूठी बातों के बीच में? ___ बच्चा पैदा होते ही रोने क्यों लगता है? वह बता तो नहीं पाता पर प्रकृति के रहस्य को जानने वाले अच्छी तरह जानते और बताते हैं कि उसके रोने के कारणों को वह जीवन भर बताता रहता है। जन्म लेने के बाद भी इस गुब्बारे जैसे फूलते-बढ़ते ब्रह्माण्ड में वह आ