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________________ 134 . मृत्यु की दस्तक परंतु जन्म-मरण का खेल तो निरंतर चलता रहता है। हमें पता नहीं चलता पर प्रतिक्षण शरीर के हज़ारों कोश मर जाते हैं और हज़ारों नये बनते हैं। मस्तिष्क कोश मरते तो लगातार हैं पर नये नहीं बनते। फिर भी उनकी संख्या इतनी अधिक है कि पता नहीं चलता सिवा इसके कि वृद्धावस्था में स्मृतिध्वंस होने लगती है, विचार शिथिल हो जाते हैं, इन्द्रियां भी धीमा काम करती हैं। इस मृत्यु को मॉलिक्यूलर डेथ कहते हैं और बड़ी मौत को मॉलर डेथ / इसी कारण आज संभव हो सका है कि दुर्घटना में मरे व्यक्ति का हृदय या गुर्दे निकाल-कर दूसरे प्राणी को जीवन दान दे सके क्योंकि वे जीवित होते हैं। मरणोपरांत नेत्र कनीनिका दान तो अब आम बात है। ___ क्या बता सकते हैं कि “मृत्यु" किस क्षण होगी? नहीं, हाँ ज्योतिषी, नाड़ी विशेषज्ञ ऐसा दावा करते हैं। एक पूरा नया विज्ञान उत्पन्न हो गया है जो चिर-यौवन और अमरता की शोध में रत है। सच पूछिये तो आधुनिक विज्ञान का जन्म ही अमृत और पारस की तलाश में हुआ है। बहुत सी थ्योरियाँ बनी कि मृत्यु क्यों होती है और वैसे ही उपाय भी बताये गये पर कोई भी सफल नहीं हुआ। एक मजेदार स्थापना सामने आई कि कोशों के बीच जो अंतराल है जिससे कोश को प्राणवायु और पोषण मिलता है वह उच्छिष्ट से अवरुद्ध हो जाता है तो मृत्यु हो जाती है। किंतु अभी तक अमरौती खाकर कोई नहीं आया / कोई सौ बरस जीता है तो कोई योगी कई सौ वर्ष तक, पर बचा कोई नहीं। स्वयं धन्वन्तरि जो अमृत-घट लेकर आये थे वे भी नहीं रहे। हमारे यहाँ एकमात्र उदाहरण है महाकाल-शंकर का जो विषपान करके भी जीवित रहे। काल पर विजय का यह बिरला उदाहरण है। हम थोड़ी और सूक्ष्म चर्चा करें। हमने ऊपर कहा कि कोश मरते हैं और शरीर में अरबों कोश हैं। और हर कोश जीवित है - प्राणवान है। हर क्षण शरीर में जन्म-मरण का खेल चलता है पर एक बात समझ में नहीं आती कि उस समय क्या होता है जब समूचा देह नगर मर जाता है? कौन-सा सब पर शासन करने वाला महाप्राण निकल जाता है? पर क्या वास्तव में समग्र मृत्यु होती है? चार्ल्स डारविन के विकासवाद सिद्धांत में कहा गया कि अस्तित्व के लिये संघर्ष होता है और इसके लिये हर प्राणी अपनी और अपनी प्रजाति की रक्षा के अनेक उपाय करता है। चिरजीवन का एक उपाय है अपनी प्रजाति की उत्पत्ति और प्रकृति ने वहाँ भी अतिशय प्रबंध किये हैं। यदि किसी प्राणी के सभी अंडे मरे नहीं तो कुछ ही समय में पृथ्वी पर स्थान नहीं रहेगा। मानव में ही नर के अंदर अरबों शुक्राणु बनते हैं और नारी में उत्पादक अवस्था में सैकड़ों डिम्ब बनते हैं। पर इनमें से कुछ ही पूर्ण नया मानव बनाते हैं। यहाँ एक अत्यंत सूक्ष्म बात है प्रत्येक शुक्राणु जीवित होता है, प्रत्येक डिम्ब जीवित होता है और इन दो के मिलन से एक जीवित भ्रूणकोश बनता है जो सम्पूर्ण नवमानव बनाने में सक्षम है (टूट जाये
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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