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________________ मृत्यु की अवधारणा - प्राचीन शास्त्र और आधुनिक ज्ञान 133 है यथा पितृयान, देवयान, देवपथ, ब्रह्मपथ, यमपथ, पितृपथ, आदि। महर्षि अरविन्द कहते हैं कि अभी इतनी प्रगति नहीं हुई कि हम बिना परिवर्तन के चल सकें, अभी सुनम्यता की कमी है। “सुपर माइण्ड” प्राप्त होने के बाद ही अमरता मिल सकती है। हमारे वाङ्मय और संत वाणी में “मृत्यु पर अपार साहित्य उपलब्ध है और उसकी चर्चा करना यहाँ संभव नहीं है। हम आधुनिक युग और आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण की चर्चा करेंगे। पहला प्रश्न है - मृत्यु कब होती है? तो अनुभव निरीक्षण, परीक्षण और अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि मृत्यु किसी एक क्षण नहीं होती। पर इस कथन का धार्मिक, सामाजिक, पारंपरिक, कानूनी और वैज्ञानिक पहलू है। चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से मस्तिष्क मूल (ब्रेनस्टेम - जिसमें मध्य मस्तिष्क, पास और मेडुला आते हैं) के कार्यकलाप बंद होने को मृत्यु कह सकते हैं क्योंकि इसी क्षेत्र में श्वास और हृदय संचालन, रक्त-संचार के केन्द्र होते हैं, यही वह केन्द्र है जो चेतना का द्वार है। यह बंद हुआ तो अटूट बेहोशी आ जाती है। उच्च मस्तिष्क से वाणी का प्रादुर्भाव भी मन से कंठ तक इसी मार्ग से आता है (माने गला रुंध जाता है)। शरीर में स्वचालित तंत्रिका (सिम्पेथेटिक) प्रणाली है जो शरीर के सभी कार्य संपादित करती है। वह भी इसी मार्ग में है। मस्तिष्क मूल ठप्प हुआ तो चेतना, बुद्धि, ज्ञान सभी का संन्यास हो जाता है। यह “मूल” क्यों काम बंद करता है इसका विस्तृत अध्ययन किया गया है। कानूनी फांसी की प्रक्रिया में कशेरूका की एक हड्डी सहसा इस क्षेत्र में प्रविष्ट हो प्राण हर लेती है। अब "हार्ट लंग” मशीन बन गयी है, रोगी को इस मशीन से जोड़ देने पर वह “जीवित" रहता है (वर्षों जीवित रह सकता है)। सन् 1958 में ब्रेनस्टेम डेथ की बात फ्रांस के तंत्रिका विशेषज्ञों ने उठाई और कहा यह “कोमा” (सन्निपात) के आगे की अवस्था है। भारत में योगदर्शन में समाधि और तुरीय अवस्था की बात की गयी है। यहाँ हम ब्रेनस्टेम डेथ के विस्तार में नहीं जायेंगे पर एक और उलझन की चर्चा करेंगे। मस्तिष्क के कोष बिना रक्त के, बिना ओषजन के तीन मिनट जीवित रहते हैं। अतः रक्त संचार पुनः प्रारम्भ करने, हृदय की धड़कन शुरू करने में इससे अधिक विलंब हुआ तो रोगी जीवित तो हो जाता है पर चेतनारहित, सागपात या उद्भिज जैसा हो जाता है (वेजिटेटिव लाइफ)। हवा, पानी, भोजन देते रहे तो वह जीवित रहेगा पर निष्क्रिय / अब इसे मृत्यु कहें या जीवन? हम जानते हैं कि सांस और हृदयगति रुक जाने के बाद क्रमशः रक्त कणों, कोशों की मृत्यु होती है, मांसपेशियां कुछ घंटों में मरती हैं (मरने के बाद शरीर का अकड़ना और फिर ढीला पड़ जाना)। केश बहुत समय तक जीते हैं और सबसे अंत में हड्डियाँ मरती हैं। संक्षेप में कहें तो पंच-तत्त्व में भौतिक शरीर का विलीन हो जाना ही मृत्यु है और यह प्रक्रिया काफी समय लेती है।
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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