________________ 132 . मृत्यु की दस्तक ___ हमने देखा कि आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो हम जी उठते हैं और निकल जाती है तो मर जाते हैं। पर “आत्मा” और शरीर का योग कब होता है? इस बाबत भी अनेक थ्योरी हैं। पाइथागोरस ने आत्मा का दिव्य उद्भव माना है और कहता है वह शरीर से पहले था और बाद में भी रहेगा। अफलातून और सुकरात भी आत्मा को अमर मानते हैं। अरस्तु आत्मा का एक अंश "नूस" (NOUS) बताता है जो प्रज्ञा की दिव्यता है। ईसाई मानते हैं - अमर आत्मा ईश्वर का सृजन है और गर्भधारण के समय शरीर में प्रवेश करती है। हिंदू विद्वान् भी मानते हैं कि प्राण या आत्मन् सृजन के समय उत्पन्न हुए और शरीर में बंदी होते हैं। मरण के समय यह शरीर के पिंजरे से छूटकर दूसरे शरीर में प्रविष्ट होती है और पुनर्जन्म होता है। बड़े भाग हों तो चक्कर से मुक्ति मिल जाती है। यहाँ. एक मजेदार बात कही गयी है कि इस पिंजरे के दस दरवाजे या खिड़कियाँ हैं (इन्द्रियाँ) और किसी से भी प्राण निकल सकते हैं। “सैंया निकस गये मैं ना लड़ी थी, ना जाने कौन सी खिड़की खुली थी"। कहते हैं योगी के प्राण कपाल से निकलते हैं। अब एक और प्रश्न उभरता है, क्या मरण किसी क्षण विशेष में होता है? यह कानूनी प्रश्न भी है क्योंकि जब कहते हैं उनकी मृत्यु इतने बजकर इतने मिनट पर हुई तो क्या यह सत्य है? आज के युग में इस बात पर प्रश्नचिह्न लग गया है। पुराने जमाने में जब हृदय का धड़कना बंद हो जाता था, साँस रुक जाती थी तो कहा जाता था कि प्राण निकल गये। इस पर हम आगे विचार करेंगे। ___ मरण के साथ जन्म की, जीवन की चर्चा भी चलती है। गीता में बड़े पते की बात कही गई है कि “मृत्यु तो जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है" या कहें गर्भ धारण के समय ही मृत्यु की यात्रा आरंभ हो जाती है। नवजात, किशोर और युवा की मृत्यु, अकाल मृत्यु कही जाती है पर कोई जातक जब पूर्ण आयु प्राप्त करता है तो इंद्रियाँ शिथिल और स्मृति शेष हो जाती है और तब चुपके से महानिद्रा में सो जाता है तो इसे “सहज मृत्यु” कहते हैं। मृत्यु का विशेष चिंतन मृत्युदण्ड पाने वाला या आत्मघात को तत्पर प्राणी करता है और इसके विविध रूप हैं। सूफीवादी चिंतन काव्यमय है। अली सरदार जाफरी कहते हैं कि कल्पना करें किसी घाटी में तीव्र गति से एक नदी बह रही है और व्यक्ति उस प्रवाह में बहता एक तिनका है, फिर एक तेज लहर आती है, तिनके को उठाकर किनारे फेंक देती है। नदी बहती रहती है। हाली के शब्दों में नदी को तो बाढ़ और प्रवाह की चिंता है। उसे क्या गरज कि नाव पार लगती है या मझधार में डूब जाती है। अकबर इलाहाबादी फरमाते हैं “बताऊँ तुमको कि मरने के बाद क्या होगा, पुलाव खायेंगे अहबाब, फातिहा होगा।" थोड़ी चर्चा अपने वाङ्मय में "मृत्यु की कर लें। ऋग्वेद कहता है “परममृत्यो अनुपरेहिपंथो / भारतीय प्रज्ञा मृत्यु को परलोक और पुनर्जन्म के बीच का द्वार मानती है। वे अद्भुत बात कहते हैं (नासदीय सूक्त में) कि सृष्टि के आरंभ में मृत्यु या अमरता नहीं थी। आगम, पुराण, तंत्र तथा दर्शन में विस्तार से मृत्यु और जीव की गति की चर्चा की गयी