________________ मृत्यु की अवधारणा - प्राचीन शास्त्र और आधुनिक ज्ञान 131 कि भगवान विष्णु अपने भक्तों के लिये अपने दूत भेजते हैं जो यमदूतों को मार भगाते हैं। ऐसी ही कल्पना अन्य देशों में भी है। ___ उस पार - यमलोक है, स्वर्ग है, नरक है, परलोक है। जब पृथ्वी सपाट थी तो ऊपर सात लोक थे और नीचे भी सात लोक। इनके अलावा विष्णुलोक, गोलोक, कैलाश, आदि की भी कल्पना की गयी। यात्रा के दौरान प्रेत को वैतरणी पार करनी होती है, उसका फैसला होता है और वह एक अवधि के लिये नरक या स्वर्ग प्राप्त करता है। पुराणों में नरकों का विशद् वर्णन है और स्वर्गलोक का मधुर स्वरूप भी बताया है, पर अवधि पूरी होने पर लौटकर फिर आना होता है। इस पुनर्जन्म से - “पुनरपि जननम्, पुनरपि मरणम्, पुनरपि जननी जठरे शयनम् के चक्कर से छूटने का उपाय है - मोक्ष / इस कल्पना में कहा गया है कि चक्कर से छूटकर आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है। __नास्तिकं और विज्ञानवादी के लिये मृत्यु का अर्थ है जीवन की हलचल की परिसमाप्ति, साँस के चरखे का रुक जाना। वे कहते हैं व्यर्थ का विवाद है क्योंकि इसमें कोई रोमांस नहीं है। पर हेगल जैसा दार्शनिक कहता है - "क्योंकि प्रेम का अर्थ है अपने व्यक्तित्व, सम्पत्ति सबका त्याग और मृत्यु स्वयं प्रेम है, मृत्यु में ही प्रेम की परमावधि उद्घाटित होती है.।” ईसा मृत्यु को जीवन का परिष्कार मानते हैं, मृत्यु पहेली नहीं अनंत यात्रा का समाधान है, स्वर्ग का मार्ग है। सुकरात विषपान कर जब मृत्यु के पास पहुँचा तो आनंद विभोर हो गया, उसकी आध्यात्मिक शोध की वह चरम परिणति थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ने प्रार्थना की “हे प्रभु, मेरी यात्रा के कर्णधार बनो, यात्रा आरंभ हो गयी है। किंतु अस्तित्ववादी सार्च निराश है, वह मृत्यु को ढूंढ नहीं पाता क्योंकि वह शोध से परे है, सभी अनुमानों को झुठलाती है। , आइये योग की खिड़की से मरण को देखें। योग के अनुसार शरीर के पाँच आवरण हैं - अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय / बड़ी रोचक अवधारणा है। मृत्यु के समय अन्नमय में बैठी जीवन-शक्ति या चेतना प्राण-मन-विज्ञान कोशों को पार करती आनंदमय कोश में तिरोहित हो जाती है। यही चेतना या आत्मा प्राण-शक्ति से स्पंदित होकर नया अवतार ग्रहण करने की प्रतीक्षा करती है या फिर परमात्मा में विलीन हो जाती है। योग साधना से समाधि अवस्था (आनंदमय स्थिति) या सचेतन मृत्यु प्राप्त की जा सकती है। भारतीय प्रज्ञा इहलोक का मोह त्यागकर अमृतत्त्व की शोध को श्रेयस्कर मानता है। प्रार्थना करता है "मृत्योर्मामृतमगमय" / इसी मंत्र का संबल पाकर नचिकेता यम के द्वार खटखटाने का साहस कर सका, स्वयं मृत्युदेवता से जीवन और मरण का रहस्य बताने का अनुरोध कर सका। मृत्यु का भय मृत्यु से भी ज्यादा भयकारक है और उपरोक्त विवरण - उस पार का मोहक छलावा उस भय को दूर करने के साधन हैं। कुछ बिरले संत कबीर जैसे ताल ठोंककर मृत्यु का आह्वान करते हैं - "हम न मरै मरि है संसारा” उनकी राय में “कबिरा घर है प्रेम का, खाला का घर नाहि, शीश उतारे भुई घरे सो पैठे घर माहि।”