________________ प्रस्तावना मृत्यु दोनों ही अपरिहार्य अनुष्ठान हैं। आधुनिकतावाद में ऐहिक व्यवस्था की प्रधानता है। इसमें शरीर का मोल है। आजकल अस्पतालों में मृतक शरीर को कृत्रिम रूप से “जीवित" रखने की व्यवस्था की जाती है। ऐसा करने का उद्देश्य क्या है? क्या अमरत्व का अर्थ है शरीर से चिपके रहना? यदि मृत्यु नहीं तो जीवन कैसा? अंधकार नहीं तो प्रकाश कैसा? "मृत्यु” जीवन से कहीं अधिक व्यापक है। हिन्दू धर्मशास्त्र में इसके अनेक पर्यायवाची शब्द हैं, जैसे “शिव”, “शुभ”, “महाकाल” (प्रलय के देवता)। मृत्यु एक निरपेक्ष सिद्धांत है, आकस्मिक घटना है। “महाकाल” अपनी “तीसरी आंख” से सृष्टि का अन्त करते हैं। चीनी भाषा के शब्द "शिः” काल के लिये प्रयुक्त होता है। इसका तात्त्विक अर्थ है गुणात्मक काल / सृष्टि का प्रारम्भ और अन्त निर्दिष्ट काल से ही होता है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का काल, विष्णु और महेश के काल से छोटा है। इस प्रकार का विश्वबोध सेमाइटी धर्मों तथा विकासवादी सिद्धांतों से सर्वथा भिन्न है। __ विकास वैज्ञानिक और अनास्थावादी विद्वान् दोनों ही जन्म और मृत्यु के प्रश्न को अनासक्त भाव से देखते हैं। सृष्टि के विकास के क्रम में मनुष्य एक नवीन जीव है। अनास्थावादियों ने मनुष्य को संसार का सम्राट् मान लिया है। वे यह भी मानते हैं कि यह सम्राट् अस्थायित्व को प्रोत्साहित करता है। अर्थात् वे भौतिक वस्तु की क्षणभंगुरता को स्वीकार करते हैं। परस्पर व्यवहार में मानवीय सम्बन्ध भी क्षणिक हैं। इधर कुछ वैज्ञानिक निर्वापण (एक्सटिंग्विशन) के सिद्धांत की चर्चा करने लगे हैं। इनके अनुसार बहुतेरे प्राणी काल-क्रम से सदा-सर्वदा के लिए विलुप्त हो चुके हैं। प्रश्न उठता है - ऐसा क्यों? इनके निर्वापण का क्या कारण था? क्या खराब जीन (जीवाणु कोशतत्त्व)? अथवा कुछ और? क्या “निर्वापण” शाश्वत् विधान है? यदि हां, तो इस प्रकार प्राणियों में अस्तित्व (जीने की क्षमता अथवा आयु का) भेद क्यों? क्या यह भिन्नता दैहिक (फिजियोलॉजिकल) है अथवा आकृतिक (मारफोलॉजिकल) कारणों से है? क्या पेड़, पौधे, पक्षी एवं अन्य प्राणियों का जीवनकाल उसकी संरचना पर ही आधारित है? हिन्दू धर्म के अनुसार जन्म और मृत्यु दोनों ही काल और स्थान की विशेषता से जुड़े हुए हैं। इसमें शुभ और अशुभ का भी विचार किया गया है। इस प्रकार.की धारणा का जैविकी से क्या सम्बन्ध है? धर्म और विज्ञान एक-दूसरे से कितना दूर और कितना निकट हैं? उपरोक्त प्रश्नों के संदर्भ में विद्वान् लेखकों ने जो अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये हैं उसे तीन खंडों में प्रस्तुत किया गया है - धर्म, शास्त्र और आधुनिक ज्ञान / प्रायः सभी लेख सिद्धांत प्रधान हैं। प्रथम खण्ड - धर्म प्राचीन लोगों के विचार में, “मृत्यु” धर्म की धारणा से सम्बन्धित है। प्रथम आठ निबन्धों में वीरशैव, बौद्ध, जैन, सिख और इस्लाम की दृष्टि से मृत्यु की अवधारणा को समझने का