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________________ 116 . मृत्यु की दस्तक ही हुआ होगा। शव का स्पर्श प्रायः सभी प्रदेशों में वर्जित माना जाता है और इसमें अत्यधिक सावधानी बरती जाती है। अशौच का काल और प्रभाव क्षेत्र मृतक की जाति, आयु और लिंग के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है। गृह्य-सूत्र अशौच की साधारण अवधि ब्राह्मण तथा क्षत्रिय के लिये दस दिन और वैश्य तथा शूद्र के लिये क्रमशः पंद्रह दिन तथा एक मास बताते हैं। पाराशर स्मृति के अनुसार अग्निहोत्र एवं वेद का स्वाध्याय करने वाला ब्राह्मण एक दिन में, मात्र वेद का स्वाध्याय करने वाला तीन दिन में तथा दोनों की उपेक्षा करने वाला दस दिनों में शुद्ध हो जाता है। बालक की मृत्यु से अल्प अशौच होता है। दो वर्ष से कम आयु के बालक की मृत्यु से मात्र माता-पिता को ही एक या तीन रात्रि का अशौच होता है। दाँत निकल आने तथा चूड़ाकरण संस्कार होने के पश्चात् मृत्यु होने पर समस्त बांधव अशुद्ध हो जाते हैं। नामकरण के पूर्व मृत्यु पर कोई अशौच नहीं होता। गृह्य-सूत्र स्त्री-पुरुष के लिये अलग-अलग अशौच की अवधि की कोई व्यवस्था नहीं देते परन्तु स्मृतियों में इसका उल्लेख मिलता है। कन्या विवाह से पूर्व शिशुवत मानी जाती है और उसकी मृत्यु से तीन दिनों का अशौच होता है। चूड़ाकरण से पूर्व मृत्यु हो जाने पर अशौच एक दिन का होता है। पिता की मृत्यु माता के पूर्व होने पर पिता की मृत्यु के अशौच के साथ ही माता की मृत्यु का अशौच समाप्त हो जाता है। परन्तु माता की मृत्यु पहले हो जाने पर अशौच पिता की मृत्यु के समय से आरम्भ होता है। गृह्यसूत्रानुसार कुलपुरोहित, स्वसुर, वैवाहिक संबंधी तथा भानजों की मृत्यु होने पर अशौच व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। किन्तु धर्मसूत्र और स्मृतियों में इसे अनिवार्य कहा गया है। अशौच की अवधि मृतक से संबंध की निकटता के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। 10. अस्थि संचय - सनातन धर्म और संस्कृति में प्रचलित मृत्यु के कर्मकाण्डों में दाह संस्कार के बाद अस्थि संचय करने की परम्परा है। वस्तुतः यह एक आदिम प्रथा को संरक्षित करने का प्रयास है। सूत्रकाल में शव का दाह कर देने के बाद प्राचीन परम्परा की रक्षा के लिये अस्थि अवशेषों के संचयन और “निखात" की परम्परा आरम्भ हो गयी थी। आश्वलायन के अनुसार यह क्रिया मृत्यु के तेरहवें या पंद्रहवें दिन करनी चाहिए, जबकि बौधायन इसका विधान दाह के दिन से तीसरे, पाँचवें अथवा सातवें दिन करते हैं। इस क्रिया में सर्वप्रथम चिता को दूध और जल से सिंचित करना चाहिए तत्पश्चात् अस्थियों को पृथक करने के लिये औदुम्बर या गूलर की लकड़ी से उन्हें हटाना चाहिए। यह क्रिया मंत्रोच्चारण के साथ करनी चाहिए। तैत्तिरियों में वर्णित व्यवस्था के अनुसार अस्थि संचयन का अधिकार मृतक की पहली
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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