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________________ मृत्यु का कर्मकाण्ड 115 को नदी के जल में विसर्जित कर देते हैं, इसे जल-समाधि के नाम से संबोधित किया जाता है। 7. भू-समाधि - भारतीय परम्परानुसार पाँच वर्ष तक के बच्चों तथा प्रवाहित नदी समीप न होने पर साधु-संन्यासियों एवं महामारी में मरने वालों के शव को भू-समाधि दे दी जाती है। 8. पर्णनर दाह - कभी-कभी किसी परिस्थितिविशेषवश मृतक का शरीर दाह करने योग्य अवस्था में प्राप्त नहीं होता, मृतक की मात्र अस्थियाँ ही उपलब्ध होती हैं। ऐसी स्थिति में अस्थियों पर घी छिड़ककर तथा वस्त्र से उसे ढककर सामान्य रीति से ही दाह-संस्कार करना चाहिए। किन्तु यदि अस्थियाँ भी उपलब्ध न हों अथवा व्यक्ति के बारे में बहुत दिनों तक कोई सूचना न प्राप्त हो तो पलाश अथवा टेसू के तीन सौ आठ पत्तों से विधिपूर्वक पुतला (पर्णनर) बनाकर दाह-संस्कार करना चाहिए। इसका उल्लेख आदि पुराण में मिलता है। गृह्य परिशिष्ट में आश्वलायन के कथनानुसार सिर के लिये चालीस, गर्दन के लिये दस, दोनों बाँहों के लिये सौ, अंगुलियों तथा छाती के लिये तीस, पेट के लिये बत्तीस, ज्ञानेन्द्रियों के लिये चार, अण्डकोश के लिये छ:, दोनों जाँघों के लिये सौ, घुटने के जोड़ के ऊपरी भाग के लिये तीस नथा पैर की अंगुलियों के लिये दस पत्ते लेने का विधान है। पत्तों को चित्तीदार हिरण की चमड़ी में लपेटकर ऊन के धागे से बाँध देना चाहिए फिर अच्छी तरह पीसे हुए जौ के आटे का पानी में लेप बनाकर उस पर चढ़ा देना चाहिए। इस प्रकार विधिवत निर्मित पर्णनर का दाह-संस्कार कर देना चाहिए। ब्राह्मणादि वर्गों के पर्णनर का दाह-संस्कार अशौच के भीतर ही क्रमशः आठवें, दसवें, तेरहवें, और अट्ठाईसवें दिन करना चाहिए। परदेश में गये हुए व्यक्ति के बारे में यदि पंद्रह वर्ष से ऊपर तक कोई सूचना न मिले तो इसी विधि से उसका संस्कार करना चाहिए। संस्कार की तिथि के निर्धारण के लिये जिस महीने की जिस तिथि को वह व्यक्ति गृह से बाहर निकला हो उसी तिथि में, यदि तिथि याद न हो तो उस मास की अमावस्या को, यदि मास भी स्मरण न रहे तो आषाढ़ की अमावस्या में यह क्रिया करनी चाहिए। 9. अशौच - मृतक व्यक्ति के ग्रामजनों, जीवित संबंधियों तथा कुल के सभी लोगों को एक निश्चित् अवधि तक अशौच का पालन करना होता है। इस अवधि में उनके लिये कोई भी शुभ-अशुभ धार्मिक अथवा सामाजिक कार्य करना निषिद्ध होता है। इस निषेध के कारण का किसी भी ग्रंथ में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। इसके मूल में चाहे जो भी धार्मिक, भावनात्मक कारण अथवा धारणा रही हो पर अनुमानतः कहा जा सकता है कि इसका प्रचलन किसी सीमा तक शव की संक्रामक प्रकृति के कारण
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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