________________ 114 . मृत्यु की दस्तक 4. दाह-संस्कार - जातीय तथा लौकिक परम्परा एवं संस्कृति के अनुसार शव-यात्रा के मार्ग में पिण्डदान करते हुए शव को श्मशान भूमि तक लाया जाता है। श्मशान भूमि पहुँचने के पश्चात् सर्वप्रथम चिता की स्थापना के लिये उपयुक्त स्थान का चयन किया जाता है। श्मशान भूमि के निकट अस्थि विसर्जन हेतु किसी नदी के न होने पर चयनित स्थान पर विशेष आकार का गड्ढा बनाने की प्रथा भी प्रचलित है जिससे कि दाह-संस्कार के पश्चात् अस्थि संचय के कार्य में सुविधा हो। शवदाह के पूर्व श्मशान-भूमि में की जाने वाली क्रियाओं का उल्लेख आरण्यकों में नहीं मिलता। इससे प्रतीत होता है कि आरम्भ में दाह-क्रियाएं मंत्रों के बिना ही की. जाती थीं। किन्तु गृह्य-सूत्र इस विषय में, विशेषतः चिता स्थापना के विषय में निश्चित् नियमों का विधान करते हैं। स्थान के चुनाव के विषय में निर्दिष्ट नियम देवताओं को बलि देने के स्थान संबंधी नियमों से बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार विधिवत् चुना हुआ स्थान- शुद्ध किया जाता है और भूत-प्रेत के निवारण के लिये मंत्र पाठ किया जाता है। आश्वलायन के अनुसार गड्ढा बारह अंगुल गहरा, पाँच बित्ता चौड़ा, शव की लम्बाई (हाथों को पार्श्व में खोल देने पर अनुमानित लम्बाई) जितना लम्बा होना चाहिए। प्रयोग में आने वाले ईंधन के प्रकार, चिता की माप तथा निर्माण और अन्य संबद्ध नियम धार्मिक ग्रंथों द्वारा निर्धारित हैं। शोकात संबंधियों आदि के स्वेच्छाचार के लिये कोई अवकाश नहीं छोड़ा गया है। दाह-संस्कार में भाग लेने वाले व्यक्तियों की संख्या विषम होती है। श्मशान में विषम संख्यात्मक मात्रा में लकड़ी से चिता निर्मित कर उस पर शव को लिटाया जाता है। तत्पश्चात् कर्ता वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच परम्परानुसार तीन, पाँच अथवा सात बार शव की परिक्रमा करके शव को मुखाग्नि देता है। मृतक के वर्णानुसार ब्राह्मण के हाथ में एक स्वर्ण-पिण्ड, क्षत्रिय के हाथ में धनुष और वैश्य के हाथ में मणि होनी चाहिए। जब शव जलकर "कपोत" प्रमाण मात्र शेष रह जाता है तब कर्ता मिट्टी के घड़े में जल लाकर चिता को शांत करता है। तत्पश्चात् सभी बंधु-बांधव स्नान करने जाते हैं और मृतक के साथ प्रेत शब्द जोड़कर उसे तिलांजलि देते हैं। इसके साथ ही मृतक के साथ सभी संबंधियों का लौकिक संबंध समाप्त मान लिया जाता है। तत्पश्चात् सभी लोग गृह को लौट आते हैं। मैथिल परम्परा में स्नान करने के पश्चात् गृह आने पर सभी लोग अग्नि, जल, लौह, पत्थर का स्पर्श करते हैं तथा मिर्च को मुख से स्पर्श करते हैं। इस प्रकार भारत के विभिन्न कुल, वंश, जाति एवं जनपदों में शवदाह की अपनी-अपनी विशिष्ट परम्परा है। 5. एकल अग्नि संस्कार - जब पति-पत्नी की मृत्यु संयोगवश एक साथ हो जाती है तो उनका दाह-संस्कार एक ही चिता पर लिटाकर किया जाता है। 6. जल-समाधि - संन्यासी तथा महामारी एवं सर्पदंश से मरने वाले लोगों के शव