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________________ मृत्यु का कर्मकाण्ड 113 मात्र धर्म ही आगे साथ जाता है। मिथिला में मृत्यु के समय भूमियोग का विशेष माहात्म्य है। ऐसा लोक-विश्वास है कि देवी सीता के अनुरोध पर भगवान श्रीराम ने सीता की विदाई के समय यह वरदान दिया कि मिथिला की इस परम पावन भूमि पर मनुष्य, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु जो कोई भी अपने शरीर का त्याग करेगा वह सीधे बैकुण्ट लोक को प्राप्त होगा। अतः आज भी देहावसान के समय परिजनों द्वारा मृतक को भूमि पर लिटा दिये जाने की परम्परा यथावत् है। शव-यात्रा - इसे अंतिम यात्रा के नाम से संबोधित किया जाता है। मृत्यु के उपरांत मृतक के शरीर को स्नान कराकर सुगंधित द्रव्य चन्दन आदि का लेप लगाकर नवीन वस्त्र धारण कराया जाता है। यदि मृतक सौभाग्यवती स्त्री होती है तो उसका दुल्हन की तरह सोलहों शृंगार किया जाता है। तत्पश्चात् उसे अपने वंश परम्परानुसार निर्मित खटिया, बाँस की सीढ़ी, पलंग अथवा पटरे पर लिटाकर कमसे-कम चार व्यक्ति कंधे पर उठाते हैं और बोलो हरि-हरि बोल, श्रीराम अथवा रामनाम सत्य है आदि परम पावन नामों का उद्घोष करते हुए शव को श्मशान तक ले जाते हैं। शवयात्रा का नेतृत्व मृतक का ज्येष्ठ पुत्र या प्रमुख शोकात संबंधी करता है। शव-यात्रा का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति अपने हाथ में जलती हुई लकड़ी लिये रहता है जिसे वह गार्हपत्य अग्नि से प्रदीप्त करता है। उसके पीछे अर्थी रहती है, जिसका अनुसरण मृतक के संबंधी और बंधु-बांधव करते हैं। गृह्य-सूत्रों के अनुसार दो वर्ष से अधिक आयु के सभी सपिण्डों को शव के साथ श्मशान तक जाना चाहिए। शव-यात्रा में सम्मिलित होने वालों का स्थान-क्रम उनकी आयु के अनुसार होता है, अर्थात् वयोवृद्ध आग-आगे चलते हैं अन्य लोग पीछे। प्राचीन काल में अग्निहोत्र की प्रथा प्रचलित थी जिसकी झलक अंतिम यात्रा के समय आज भी देखने को मिलती है। अग्निहोत्र ब्राह्मण की अग्नि उनके उपनयन संस्कार (यज्ञोपवीत) के समय आचार्य द्वारा प्रज्ज्वलित करायी जाती थी। अग्निहोत्र ब्राह्मण इस अग्नि को जीवनपर्यन्त प्रज्ज्वलित रखते थे और मृत्यु होने पर उनके कर्ता पुत्र शव-यात्रा में इसी अग्नि को साथ ले जाते थे एवं इसी अग्नि से शवदाह करते थे। आज भी भारतीय समाज की अनेक जातियों में शव-यात्रा के दौरान गृह से अग्नि ले जाने का विध न मिलता है। शव-यात्रा आरम्भ होते समय उसका अग्रणी एक मंत्र की आवृत्ति करता है जिसका भावार्थ है - “पुषा जो मार्ग को भली-भाँति जानता है, तुम्हें ले जाने के लिये जिसके उत्तम प्रशिक्षित पशु हैं, और जो लोक का रक्षक है, वह तुम्हें यहाँ से ले जा रहा है, वह तुम्हें पितृलोक में स्थानान्तरित कर दे। अग्नि जो यह जानता है कि तुम्हारे लिये क्या उचित है, यहाँ से ले जाये।"
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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