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________________ ज्योतिष शास्त्र में मृत्यु-विचार 107 अहन्यहन्य भूतानि गच्छन्ति यम मन्दिरे / अपरे स्थातु भिच्छन्ति किमाश्चर्य मतः परम।। अर्थात् यह जानते हुए भी कि प्रत्येक व्यक्ति यमराज गृह (मृत्यु) को जाता है। फिर भी मैं नहीं मरूँगा, मेरे साथ ऐसी घटना नहीं होगी, ऐसी निडरता बनी रहती है - इससे बढ़कर दूसरा कोई आश्चर्य नहीं। गरूड़ पुराण (13.34) में मृत्यु के अन्तिम क्षण तथा मृत्यु के पश्चात् मृतक की आत्मा की यात्रा और तत्सम्बन्धी अनुभव का विषद् वर्णन है। श्री भगवान ने कहा - हे पक्षिराज गरुड़! मैं भयंकर यममार्ग का वर्णन करता हूँ, पापी लोग जिसमें होकर यमलोक को जाते हैं। सुनने वाले को भी वह वर्णन अति भय देने वाला है, परन्तु मैं तुम्हारे आग्रह से कहता हूँ। सर्वदा पाप में ही जो लोग आसक्त रहते हैं, धर्म और दया से रहित हैं, कुसंगति में रहते हैं, सत्संगति और उत्तम वेद-शास्त्र से विमुख रहते हैं, जो अपने को सम्मानित मानकर घमंड में फूलते हैं, धन तथा मर्यादा के गर्व से युक्त हैं, दैवी-शान्ति रूपी सम्पत्ति से हीन होकर राक्षसी भाव प्राप्त होते हैं, जो भोग तथा काम में लीन रहते हैं, मन जिनका माया-जाल में फँसा हुआ है, अपवित्र नरक में वे गिरते हैं। मनुष्य जो दान देने वाले हैं मोक्ष प्राप्त करते हैं। जो लोग पापी हैं वे यम-वासना सहते हुए दुःखपूर्वक यमलोक जाते हैं। इस संसार के पापियों को जैसे दुःख मिलते हैं उन दुःखों को भोगने के पश्चात् जैसी मृत्यु होती है, तथा जैसा कष्ट वे पाते हैं तुमसे उसका वर्णन करता हूँ, ध्यान से सुनो। संसार में मनुष्य जन्म लेकर पूर्व जन्म के संचित किये हुये अपने पुण्य और पाप से अच्छे-बुरे फल को भोगता है। शेष अशुभ कर्म के संयोग से शरीर में कोई रोग हो जाता है। रोग और विपत्ति से युक्त वह प्राणी जीवन की आशा से उत्कंठित रहता है। युवावस्था का वेदनाहीन वह प्राणी स्त्रीपुत्रों से सेवित होने पर भी जरावस्था को प्राप्त होता है, बलवान सर्प के समान काल एकाएक उसके सिर पर आ पहुँचता है। वृद्धावस्था के कारण रूपहीन होकर घर में मृतक के समान रहता है। गृहस्वामी द्वारा अपमानयुक्त दिये हुये आहार का श्वान के समान भोजन करता है, रोग और मन्दाग्नि के कारण उसका आहार घट जाता है, चलने-फिरने की शक्ति घट जाती है और चेष्टाहीन हो जाता है। जब कफ से स्वर-नालियां रुक जाती हैं, श्वाँस के आगमन में कष्ट होता है, खांसी और श्वाँस के वेग के कारण उसके कण्ठ में घुर-घुर शब्द होने लगता है। चेतना रहने के कारण चारपाई पर पड़ा हुआ सोचता है, बन्धु वर्ग से घिरा हुआ वह प्राणी मृत्यु के सन्निकट पहुँचता रहता है, बुलाने से भी नहीं बोलता है। इस प्रकार अब भी कुटुम्ब के पालन-पोषण में जिसकी आत्मा लगी रहती है, उस परिवार के प्रेम की वेदना से वह प्राणी रोता हुआ परिवार के बीच में मर जाता है। हे गरुड़! मृत्यु के समय देवताओं के समान प्राणी की दिव्य दृष्टि हो जाती है। वह संसार को एकमय देखता है, कुछ भी बोलने में असमर्थ हो जाता है। इन्द्रियों की व्याकुलता से चैतन्य प्राणी भी जड़ के समान
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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