________________ 106. मृत्यु की दस्तक रा. बु. 10 2 शु. श. चं. उपर्युक्त चक्र में अष्टमेश शुक्र अष्टम स्थान में शनि तथा चन्द्रमा के साथ है तथा पापग्रह मंगल द्वारा देखा जा रहा है अतः ऐसे व्यक्ति की मृत्यु जल में डूबने से होती है। ज्योतिष से भिन्न अन्य शास्त्रों में भी मृत्यु पर विचार किया गया है। कठोपनिषद् में मृत्यु के देवता यम और बालक नचिकेता के संवाद से यह स्पष्ट होता है कि आत्मा परिव्यापी है तथा मृत्यु शरीर तक सीमित है। गीतोपनिषद् में कहा गया है जातस्य हि ध्रुवो मृत्युधुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।। 2.27 / / ' अर्थात् जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित् है, और मृत्यु के पश्चात् उसका पुनर्जन्म भी निर्धारित है। अतः हे अर्जुन! अपरिहार्य कर्तव्य का पालन करो, तुम्हें विलाप नहीं करना चाहिये। वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जिर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।। 2.22 / / जिस प्रकार पुराने वस्त्रों को त्यागकर मनुष्य नवीन वस्त्र को धारण करता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा वर्तमान शरीर को त्यागकर नवीन शरीर को धारण करता महाभारत में युधिष्ठिर और यक्ष का एक प्रसंग है। यक्ष ने युधिष्ठिर से चार प्रश्न पूछे थे, उसमें दूसरा प्रश्न था - कि इस चराचर जगत् में आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने कहा -