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________________ 92 मृत्यु की दस्तक विश्व में एक ओर ऐसे प्राणी भी हैं जिनकी आयु कुछ क्षण से कुछ माह तक सीमित होती है और दूसरी ओर कुछ ऐसे प्राणी भी हैं जिनकी आयु कुछ वर्षों से लेकर हजारों वर्षों तक ही होती है। दर्शन-शास्त्र इसका कारण भोग की मात्रा को मानता है। सामान्यतया मानव की आयु सौ वर्ष मानी जाती है किन्तु कतिपय लोग ही पूर्ण आयु का भोग कर पाते हैं। कम आयु की मृत्यु को अकाल मृत्यु कहा जाता है जिसके कारणों पर सप्रामाणिक विस्तृत एवं गम्भीर विचार की आवश्यकता है। पुराण साहित्य में मानव वर्ष के आधार पर दिव्यवर्ष की कल्पना की गयी है और यह बतलाया गया है कि मानव का एक वर्ष देवताओं के लिए एक दिन-रात के बराबर होता है। इसी तरह उनका पक्ष, माह एवं वर्ष बनता है और उन देवताओं की आयु उनके अपने वर्ष से सौ वर्ष मानी जाती है। इसी क्रम में ब्रह्मा का वर्ष, विष्णु का वर्ष एवं महेश के वर्ष का निर्धारण होता है और उनकी आयु भी उनके अपने वर्ष से सौ वर्ष मानी जाती है। अन्त में केवल एक तत्त्व जिसे परात्पर तत्त्व कहा जाता है उसका न जन्म होता है और न मृत्यु। वह काल की अवधि से परे होता है। इसे कहीं परात्पर विष्णु, कहीं सदाशिव, कहीं परब्रह्म आदि नामों से अभिहित किया जाता है किन्तु वास्तविक रूप में वह नाम आदि से परे होता है जिसकी कल्पना मन द्वारा संभव नहीं होती अतः कोई भी शब्द उसका वाचक नहीं होता क्योंकि वह वाणी की परिधि से परे होता है। इस प्रकार अनन्तं ब्रह्माण्डों में ऐसा कोई भी प्राणी मनुष्य, देव, देवाधिदेव नहीं है जो मृत्यु के प्रभाव से परे हो। सभी की सीमा का निर्धारण और सबका अन्त मृत्यु है। भारतीय दर्शन में मृत्यु से सदा के लिए छुटकारा प्राप्त होने वाली जिस स्थिति की चर्चा की जाती है वह मुक्ति, मोक्ष, निर्वाण, अपवर्ग, निःश्रेयस, आदि नामों से जाना जाता है। इस परमपद या चरम पुरुषार्थ के स्वरूप के विषय में प्रत्येक दर्शन सम्प्रदाय अपना मत प्रस्तुत करता है जो उसके तत्त्वमीमांसीय परिधि में होता और उसके साधनों के स्वरूप उनके अनुष्ठान की प्रक्रिया का विस्तृत विवेचन भी करता है। किन्तु यह एक मान्यता है कि 84 लाख योनियों में केवल मानव में ही वह क्षमता और योग्यता है जिससे वह उन साधनों का अनुष्ठान कर मृत्यु से परे जाकर इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है।
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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