________________ - श्री महानिशीधसूत्रं :: मरने 0 .63 सीहासणोनविदठी थातंचविहदेननिकानिमियं जह पर समवसरणं तुरियं करंति देवा, जं रिखीपू ! जगं तुला॥६॥ जत्थ समोसरिभो सो भुवर्णक्क गुरु महायसी अरहा। अदमत्याडिहेरथसुधिधियं हवा य तित्थियं नामं ॥९॥जह नि लइ असेस मित्तं चिक्कणंपि भल्वाणं / पडिबी.' हिऊण मरगे उमेश जह गणहरा दिक्खं // 46 // गिण्हति महामहणी सुत्तं गंधति जहर य जिणिंही। भासे कसिणं अत्ध अगंतगमपजवेहि तु॥९७॥ जह सिज्झइ जगनाहो महिमं निवागनाभियं जहय! , 'सव्धेवि सुरमरिंदा असंभवे तह विमोचंतिम 98 // सोगत्ता पगलंत सुधोयगंडथलसरसत्यवाह / कलणं विलारस हा सामि! कथा अनाहति। 9 // जह सुरहिगंधगम्भीणमहंतगोसीसचंदणदुमा : करहिं विहिपु-वं सस्कारं सुरवरा सवे 1300 काऊणं सौगता सुन्ने सरिसिपहे पलोयंता।। : जह वीरसागरे जिणवराणं अदठी) पक्वालिझणं च / / 101 // सुरलोए जेऊणं आलिंपेमण पनरचंदणरसणं / मंहारपारियाययसथक्त्तसहस्सपत्तेहिं // . 1302 // ज़ह अच्छण सुरा नियनिथभरणेसु जहवय धुणंति (तं सम्वं मत्था वित्थरणभरहतचरिया/भहाणेअंतकडदसाणं तं, मम्झाउ कसिण कि। न्नेयं // 103 // एत्थं पुण जे पगयं तं मोतुं जा भणेज्ज तावेयं / हवई असंबद्धरुथं गंधस य बित्यरमणतं // 10 // एथपि अपत्याचे सुमहतं कारणं समुवइ / जे बागरियं तं जाण भवसत्ताणाऽगुग्गह'हठाए ॥१०॥जह वाजती जत्ती भक्खिज्जा मोथगो सु। -संकरिमी / जसो नसोविजणे अइगुरुयं माणसं पीर। 變變變變變變變變變變變變變