________________ 627 - श्री भागमसुधा सिन्धुः दशमी विभागः बंध मणसावि में रख लुः // 0 // तेसिं परमीसरियं सबसिरीवण्णबल पमाणं च ।सामन्य जसकित्ती सुरः लोगचुए अहह अवयरिए // 1 // जह काकणानभवे उरगत देवलोगमणुपत्ते तित्ययरनामकम्मं जह बद्धं एगाइनीसदधामेसु ॥२॥जह सम्मन्तं पत्तं सामन्नाराहणा य अन्नभवे / जह त्रिसलानो सिद्धस्थघरणी चोदसमहासुमिणलंभ ॥३॥जह सुरहिनधपक्रदेव गभसहीए असुहमवहरणं / जह सुरनाही अंगुलपवणसियं महंत भत्तीए // 4 // अमयाहारं भ.. तीए देह संधुणइ जाव य पसूओ। जह जायकम्मविणिोगकारियाभो दिसिकुमारीओ // 5 // सत्वं नियकतवं निव्वतंती जहेब भत्तीए / बत्तीससुरवरिंदा गरुयपमोएण सबरिदीए ॥६॥रोमंचकंधुपुलाय. भत्तिभरमाइयस्सगत्ता ते / मन्नते सकयत्य में अम्हाण मेरुभिरिसिहरे॥॥ होही क्षणमप्कालिय. सुसमभीर दुंदुहिनिधोसं / जय-सहमुहलमंगलकयं जली जह य वीरसलिलेणं बसुरहिगंधवासियकंचणमणितुंगारयण) कलसेहि / जम्माहिसेय. महिमं करेनिजह) जिणवरो गिरिचाले ॥"ज. ह इंवायर भयव वायर भदवारिसोवि। जह गम कुमारतं (परियो बोहिति) जहरीजनिया वा // 10 // जहग्यानिवखमणमहं कति सम्वे सुरा / सूरा मइया / जह महियासे घोंरे परीसहे बिमाणसतिनिछे / / 11 // जह घणघाइचउक्त (कम्म) हाई घोरतवझागजोगभरगीए। लोगालोगपधारन याए जह व केवलं नाणं॥२॥ केवलमहिमं पुणरवि का. ऊणं जहसुरासुराईया। पुच्छति संसप धम्मीतवचरणमाईए॥१३॥ जहर कहे जिणिती सरकय