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________________ श्रीमहानिशीथमू : Arय 41 : पान-थे, सधंदे सबले नहा। दिठीएनि इमे पंच, गोयमा! न निरिमखए // 169 // सबन्नु देखियं मग्गं, सबक्सप्पणासगं। साथागारवगुंफाते (गुरुएनि) अन्नहा भणियमुज्झए॥१०॥ प्रथमकवर्गपि जो एगं. सन्नन्नहिं पवेदियं / न गेएज्जामहा भासे मिनधादिली स निनिलयं ॥११एवं मारुया संसरिय परि गणाला संध। संवासं च हिवाळखी, सम्बोवाएहि वज्जए॥ 17. भय : निभसीलाणे, दरिमणं तंपि निछामि। पन्छि. जं गगरेसीय इति उभयं न जुज्जए 1 // 13 // गोथमा / भट्टसीलाणं, दुनरे संसार सागरे / धुवं तमणुकंपिता, पायच्छिते परिमिए // 17 // भय किं पायरिण, छिदिज्जा नारगाउयं / अणुचरिउण परिधतं, बहवे दृगई गए ॥१५॥गीयमा। जे समज्जेज्जा, अर्णनसंसास्थित्तगं। परिउत्तेणं धुतंपि, छिदे किं पुणो नरयाय॥१६॥ पायच्छिन्तस्स भुवोऽत्थ, नामज्यं किंचि विजय / बोहिलाभ पमोतुणं, हारियं तंज लभ ||177 // तं चाावा) उकायपरिभोगे, तेउकायन्स निरिछय। अघोहिलाभियं कम्म, वजए मेहुणे य॥१७॥ मेडणं आर. कायं च, तेउकायं तय नम्टा नोवि जत्तेणं, रजेज्जासं.' जरिए // 79 // से भमत्र ! गारस्थीणं, सबमेवं पत्तहालौ अब भवोही भरेंज एसुनो मिरवाशुणाणु नयधरणं तु निप्पलं॥०॥ 'गोथमा ! विहे पहे अम्वाए, सुसमणे असुसावए / मह व्य. धरे पटमे, पीयुगु-बयधारण गतिविहंतिविण समोहि', सत्व मावज्जमुन्झियं जावज्जीवं पयं घोरं, पडिजिथं मोकवसा. हणं // 1-2 विगविहं व निविटवा, धलं मारज्जमुन्झियं / उ. हिरकालियं तु पये देखेग) संबसे गारथी हि 14 // तहेव ति. विहनिविहेणं ३छारंभपरिगहं / वोसिरति अणगारे, जिणलिंग धनि य॥ren इयरे य अणुन्झिना, इमारंभपरिगहं / सवारा. भिरए म गिही, जिणलिंगं न पूथए (ण धारयति ) १.५॥ता गोयमेगा देशम्स. पडिमते गार भवे / तं यमगुपालनाणं, .
SR No.004371
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size23 MB
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