________________ (20) श्री आगभ सुधा सिन्धु दशौं विभाग 2.] [11 37गमा सिन्धु:: दशमी भाग: सा महकिले समुत्तिन्ने, सुहिय से अताणय। मन्नतो पमुइभो हिठी, सत्यरित्तो विचिठ्ठई // 16 // चिंतई किल नियुओमि अहं, विलियं दुम्लपि में। कड्यणहि सयमेव,न मुणे एवं जला मए ॥४॥रोह-माणगएणं रह, अज्याणे तहेव या संवउगवत्ता उतंदुम् अणंतातगुणं कई॥८॥ जं वाणुसमथमणवरयं, जहा राई तहा रिणं। दूहमेवाणुभवमाणस्स. वीसामो नो नसे(भवे)ज्ज मे 40s समापि बरति / रिपसु, सागरोवमसंखया / रसरस निलिज्जए हिथयं, जेया / इच्छतताणवि॥५०॥ अहबा कि कुंथुजणियार, मुक्को सो जुम्ससंकड़ा। स्वीण हठकम्मसरिसा मो, भलेज जणुमेतेणेन उ // 4 // कुंथुमुखलम्वणं इनई सब्ब पच्चकवं टुक्खरं / अणुभवमाणोविजे पाणी, ण यागंती तेण वक्बई // 2 // अन्ने विउ गुरुयरे, उरलेसब्वेसिं संसारिणं / सामन्ने गोभमा! ता कि, तस्स ते गोदए गए ? // 53 // हण मरहं जम्मजम्मेसुं, वाथावि उकेरभागि३। तमवीह जं फलं देज्जा, पावं कम्मं पवुज्जयं तस्सुस्था बढ़भवरगहणे, जत्थ जत्थोवन-जइ / तत्य तत्य.स हुम्मंती, मारिजंती भमे सया // 55 // जे पुण मंगउवंगं या, अखि कम्णं च णासियं / झडिअहिटपहिठभंगं वा, कीटपयंगाड्याणिणं // 56 // कयं वा कारियं वावि, कमंतं पाहगुमथ / तस्सुहया चक्कनालिवहे. पीलीही सो तिले जहा। 57 // इक्कं वा गो दुवे तिणि वीसं नीमे न पाविया संस्थेचे वा भवम्गहणे, लभते स्वपरंयरं // 54 // असूया मुसाऽनि. दव्यय, जं यमाय भन्नाणदोसओ , कदप्यमाहवाएगंभ भिनिवेसे वा पुरो(णो) // 59 // भणियं भणादियं वावि,भन्नमाणंच अणुमयं। कोहा लोहा मया बासा,तस्सुहया एवं भवे // 6 // मूगो पूरमुहो मुस्खो, कलन्लाविलल्लो भो भवे। विहलवाणी सुयस्टोवि, सवय भक्वर्ग लभे ॥६॥वितह MMMMMMMMMMMMMMM AAP ROMANTM