________________ (14) श्री आगभ सुधा सिन्धु दशमों विभाग ,14] TET आगमसुधासिन्धुः दशमो विभाग: कहे। रायाजीयं निकितामि, अह नियच्चरिथं कह // 17 // पाणे. हिंपि स्वयं जंतो, नियच्चरियंकटेक्नो / सवस्सहरणच रज्ज च, पाणेवी परिचएसु णं // 17 // मयावि जति यायाले, निथहश्चरियं कहेंति नो / जे पावाडम्मबुद्धिया, काउरिसा एगमियो। ते गोवति सच्चरियं, नो सयपुरिसा महामती॥१७॥ सय्युरिसा ते णचंति, जे दाणवईह दुजणे / सप्पुरिसाणं चरिते भणिया, जे निस्सल्ला तवे स्था॥१७३॥ माया अणिमाणोऽवी, पावसल्लेहिं गीयमा ! / णिमिसद्धार्गतगुणिएटिं, पूरिज्जे नियम्खिया 1/174 // ताईच झाणस झाथघोरतवसंजमेण या निभेण अमा एणं, तकवणं जो समुधरे // 175 // भालोएत्ताण णीसल्लं, निदिई गरहि दढं। तह चरई पारितं,जह सल्लाणमंतं करे॥१६॥ अन्नजम्मपत्ताणं, खेती (खाणीभूयाणवी दढं। णिमिसरखणमु. इत्तेणं, आजम्मेणेव निरिभो॥१७७॥ सो सुहडो सो य पुरिसो,सो तवस्सी स पंडिभो / खंतो तो विमुत्तो य, सहलं तम्सेवजीवियं // 17 // सूरी य सो सलाही थ, दब्बो य खो खणे। जो सुदालोधणं देतो, नियच्चरियं कहे कुंडे // 179 // अन्य गोयमा पाणी, जे सल्लं अउड़ियं / माया लज्जा भया मोहा मुसकाराहियए धरे॥१०॥तं तस्स गुरुतरं दुक्खं, हीणसत्तस्स संजणे। से चित्ते अन्नागहोसाओ, गोदरं दृक्विजिहं किल एगधारो दुधारी वा, लोहसल्लो अणुद्धिओ। सल्लेगत्यामजमेणं,अहवा मंसीभर सो २॥पावसल्लो पुणासंस्थे तिखधारो सुहास्गो बदमवंतर सम्यगे, भिंदे कुलिसी गिरी जहा // 33 // अत्यगे गोयमा! पाणी,जे भवमयसाहस्सिए / सन्माय-माणजोगेण,घोरतवअंजमेण य॥१०॥ सल्लाई उधरेऊणं, विरया ता दुस्ख केसओ / पमाया बिउणतिरोहि, पूरिज्जती पुणोविय जम्मतरेसु बटुएसु, तवसा निहाइटकम्मुगो / सल्लुबरणस्स सामत्थ, भवंती कहरिजं पुणोतंसामग्जिलभित्ताणं जे पमाथवसं गए।ते मुसिए सव्वभाधेणं कल्लाना.