________________ महानिशीधसूत्रं अध्ययनं। किंचि सायी / बहुदोसं न कहं समणी, जं दिठं समणीहि तं. कहे // 155 // असावज्जकहा समणी, बहुआलंबणा कहा। पमायरखामगा समयी, पाविट्ठा वलमोडीकहा // 156 // लोग विरुद्धकहा तह य, परजवएसालोथणी। सुथपच्छिन्ता तह य, जायादीमयसंकिया।।१५७॥ मूसागारभीरुया चेव,गार वतियदसिया तहा / एवमादिअगेगभावदोसवसगा पाव सोलेहि परिया / / 15 / अयंता निरंतरा) अणंतेयाकालसमएणं, गोयमा। अक्कंतेणं। अयंताओ(भोगाओ) समणीओ, बहुक्त्वावसहं गया // 159 // गोथमा अणताओ चिरति, जाऽगादी सल्लसल्लिया। भावदोसेक्कसल्लेहि (मुंजनाणी भी कडुविरसं) धोरुग्गुगतरं फलं ॥१६॥चिठइस्संति अज्जावि तेहिं सल्लेहि सल्लिया। अणंतंपि अगा गयं कालं, तम्हा सल्लं सुहममवि, समणी पो धारेज्जा रखणंति // 16 // धगधगधगस्स पजलिए, जालामालाउले दढं / हृयवहेवि (बहुविवि) महाभीमे, (स)सरीरं उज्झए सुहं // 162 // पयलंतंगारशसीए, एगसि संप पुणे जले / धल्लिंतो सरितो सरिथ, जं मरिजिपिज्जेपि) सुम्करं // 16 // वंस्थिस्स सहत्थेटिं, एस्के कमंगावय। होमिजइ अगीए, अणुर्दियहपि सुक्करं // 164 // स्वरहरुसतिक्षकरवत्तदतेहि फालाविलोणूस. सज्जियारवार, जं धत्ता ससरी अच्चंतसुक्करं। जीवंतो सयमनी / सम्मं सल्लं सारिऊण ण 165 // जवचारहलिहादिहिजे आलिप नियंतणूं। मयपि सुकर छिदेऊण, सहत्यण जी घेते सीसं निय. एचपि सुक्करमलीह, दक्करं तवसंजमं / नीसल्लं जेण तं भणिय सल्लो यनिथदक्विा // 16 // मायारंभे पन्नो,तं पाणि सक्कए। राया दुचरियं पुच्छे, मह साहइ देहसध्वस्सं ॥६॥सव्वस्संपि पपुज्जाउ, नो नियन्यरियं कहे / राया दुचरियं पुच्छ साह राहइंघि देमि ते // 169 // पुहइं रज्जं तां मन्ने, नो नियन