________________ 6.14Jii आगमसुधोसिन्धुः दशमो विभागः / मंदिरा पलिंगच्छा // 22 // उत्तुंग थोरपणवदा, गणिगा ! आलिंगि दटं। भन्ने कि जासिम दविणं, अविहीए दा. उ' चुल्लगा / // 2 // तेणवि भवियत्वयंए, कलिऊगे. य पभाणिथं / जहा जा ने विही इठा, तीए दृव्वं पा). / यसु // 2 // गहिऊ णाभिरगहं ताहे, पविठो तीन मंदि. 2 एवं जहा न ताव अहथं, भोथणयाणविहिं करेशा दस दस ण बोहिए जाव, दियहे 2 अणूणिगे। पन्ना-जा 'न पुन्नेसा, काश्यमोक्खं न ता करे॥२६॥ अन्नं च न मेलायव्वा, पवज्जोवठियस्सवि। जारिसगं तु गुरुलिंग, भने सीसपि तारिसं // 27 // भैरवीगन्ध निहीकाउं,लुचिभो 'खोसिभोवि सो। तहाशहिभी गणिगाय,बहो जहयेमपासेहि // 28 // आलावाओ पणो यणथाउ रती रती वीसंभो। बीसंभाभी हो पंचविहं बदए पेम्म / / 29 // एवं सो पेम्मपासेहि, बद्धोऽविसावरतणं / जहो. / वठं करेमायोदस अहिए वा दिणे दिणे // 30 // पडिबी. हिऊया संविग्गगुरुयामूले परसई। संपयं बीहिभो सोविनी), दुम्मुहे हमणे) जहा तुम // 3 // धम्म लोगस्सं साहेसि, अत्तकज्जमि मुन्झसि / गुणं विक्केगथं धम्म, सय णाणुचिदसि॥३२।। एवं सो वयां सोचा, दुम्मुहस्स। सुभासियं / धरयरधरम कंयंती, निंदिर गरहिं चिरं। 33 // हा हा हा हा अफज्जं में, भदउसीले कि कयं जेणं / तु सुतोऽप्यसरे, गुडिभोऽसुड़ किमी जहा॥३॥धीधी भी थी | अहनेणं, पेज मेडगुचि दिव्यं / जच्चकंचणसम उत्ताणं, 'असुइसलिम मए कयं / / 35 // स्वणभंगुरस्स देहस्स, जा | विवनी ण में नये। ता तित्ययरस्स पामूलं पायतिं चरा मिऽहं // 36 // एसमागती एल्य, चिलंतागेव गोथमा' 'घोरं चरिमग पायरिधत्तं, संवेगाऽम्हेहिं भासियं // 3 // ' घोरवीरनवे काउं, असुहकम्म खवेत्तु य। सुस्कायां