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________________ [71 श्रीमज्जम्बूद्वीपप्रज्ञप्त्युपाङ्ग सूत्रं : तृतीयो वक्षस्कारः ] कणरिंद / लक्खणसहस्सधारक रायमिदं णे चिरं धारे // 1 // हयवइ गयवइ णरवइ गावणिहिवइ भरहवासपढमवई / बत्तीसजणवयसहस्सराय सामी चिरं जीव // 2 // पढमणरीसर ईसर हिरईसर महिलि बासहस्साणं / देवसयसाहसीतर चोदसरयणीसर जसंसी // 3 // सागरगिरिमेरागं उत्तरवाईणमभिजिग्रं तुमए / ता अम्हे देवाणुप्पियस्स विसए परिवसामो // 4 // अहो णं देवाणुप्पियाणं इड्डी जुई जसे बले वीरिए पुरिसकारपरकमे दिव्या देवजुई दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमगणागए, तं दिट्ठा णं देवाणुप्पियाणं इद्धी एवं चेव जाव अभिसमराणागए, तं खामेमु णं देवाणुप्पिया! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरुहंतु णं देवाणुप्पिया ! गाइ भुजो 2 एवंकरणयाएत्तिकटु पंजलिउडा पायवडिया भरहं रायं सरणं उविति 5 / तए णं से भरहे राया तेसिं आवाडचिलायाणं अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छति 2 त्ता ते श्रावाडचिलाएं एवं वयासी-गच्छह णं भो तुब्भे ममं बाहुच्छायापरिग्गहिया णिब्भया णिरुव्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसह, णत्थि भे कत्तोवि भयमस्थितिकट्टु सकारेइ. सम्माोइ सकारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ 6 / तए णं से भरहे राया सुसेणं सेणावेई सद्दावेइ 2 ता एवं वयासीगच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया ! दोच्चंपि सिंधूए महाणईए पचत्थिमं णिक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि अ श्रोत्रवेहि 2 त्ता अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छाहि 2 ता मम एमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पिणाहि जहा दाहिणिलस्स गोयवणं तहा सव्वं भाणियब्वं जाव पचणुभवमाणा विहरंति ७॥सूत्रं 61 // तए णं दिव्वे चक्करयणे अराणया कयाइ पाउहघर. सालायो पडिणिक्खमइ 2 ता अंतलिक्खपडिवराणे जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसिं चुल्लहिमवंत-पव्वयाभिमुहे पयाते श्रावि होत्था 1 / तए णं से भरहे राया तं दिव चक्करयणं जाव चुल्लहिमवंत-वासहरपवयस्स अदूरसामंते दुवालसजोत्रणायामं जाव चुल्लहिमवंत-गिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिराहइ 2 /
SR No.004368
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1978
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size13 MB
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