________________ श्रीमत् सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रं : प्रा० 10 प्रा०प्रा० 20 ] [ 363 // अथ दशमप्राभृते एकोनविशतितमं प्रामतप्राभृतम् // ता कहं ते मासा आहिताति वदेजा ?, ता एगमेगस्स णं संवच्छरस्स बारस मासा पराणत्ता, तेसिं च दुविहा नामधेजा पराणत्ता, तंजहालोइया लोउत्तरिया य 1 / तत्थ लोइया णामा सावणे भवते श्रासोए जाव श्रासाढे, लोउत्तरिया णामा-अभिणंदे सुपइट्टेय, विजये पीतिवद्धणे / सेज्जंसे य सिवे यावि, सिसिरेवि य हेमवं // 1 // नवमे वसंतमासे, दसमे कुसुमसंभवे / एकादसमे णिदाहो, वणविरोही य बारसे // 2 // 2 // सूत्रं 53 // दसमस्स पाहुडस्स एगूणवीशतितमं पाहुडपाहुडं समत्तं // 10-11 // // अथ दशमप्राभते विंशतितमं प्राभृतप्राभतम् // ___ता कति णं भंते ! संवच्छरे श्राहिताति वदेज्जा ?, ता पंच संवच्छरा थाहितेति वदेजा, तंजहा–णक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सणिच्छरसंवच्छरे // सूत्रं 54 // ता णक्खत्तसंवच्छरे णं दुवालसविहे पराणत्ते, सावणे भदवए जाव श्रासाढे, जं वा बहस्सतीमहग्गहे दुवालसहिं संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेति // सूत्रं 55 // ता जुगसंवच्छरे णं पंचविहे पराणत्ते, तंजहा-चंदे चंदे अभिवडिए चंदे अभिवड्डिए चेव 1 / ता पढमस्स णं चंदस्स संवच्छरस्स चउवीसं पव्वा पराणत्ता, दोबस्स णं चंदसंवच्छरस्स चउवीसं पव्वा पराणत्ता, तबस्स णं अभिवड्डितसंवच्छरस्स छव्वीसं पव्वा पराणत्ता, चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स चउवीसं पव्वा पराणत्ता, पंचमस्स णं अभिवडियसंवच्छरस्स छव्वीसं पवा पराणत्ता, एवामेव सपुवावरेणं पंचसंवच्छरिए जुगे एगे चउवीसे पव्वसते भवतीति मक्खातं // सूत्रं 56 // ता पमाणसंवच्छरे पंचविहे पराणत्ते, तंजहा-नक्खत्ते चंदे उडू श्राइच्चे अभिवड्डिए // सूत्रं५७॥ ता लक्खणसंवच्छरे पंचविहे पराणते, तंजहा-नक्खत्ति चंदे उड, श्राइच्चे