________________ श्रीमज्जम्बूद्वीपप्रज्ञप्त्युपाङ्गसूत्र :: पञ्चमो वक्षस्कारः ] [ 163 करेंति अप्पेगइया दुहुदुहुगं करेंति अप्पेगझ्या विकियभूयाई रूवाई विउवित्ता पणच्चंति एवमाइ विभासेजा जहा विजयस्स जाव सव्वयो समंता ग्राहावेति परिधावेंतित्ति // सूत्रं 122 // तए णं से अच्चुईदे सपरिवारे सामि तेणं महया महया अभिसेएणं अभिसिंचइ 2 त्ता करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ 2 त्ता ताहिं इटाहिं जाव जयजयसह पउंजति पउंजित्ता जाव पम्हलसुकु. मालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइं लूहेइ 2 ता एवं जाव कप्प. रुस्खगंपिव श्रलंकियविभूसिधे करेइ 2 ता जाव गट्टविहिं उवदंसेइ 2 त्ता अच्छेहिं सराहेहिं रययामएहिं अच्छरसातण्डुलेहिं भगवश्रो सामिस्स पुरयो अट्ठमंगलगे ग्रालिहइ, तंजहा-“दप्पण 1 भदासणं 2 वद्धमाण 3 वरकलस 4 मच्छ 5 सिविच्छा 6 / सोत्थिश्र 7 णंदावत्ता 8 लिहिया अट्ठमंगलगा // 1 // " 1 / लिहिऊण करेइ उवयारं, किंते ?, पाडलमल्लिअ-चंपगासोग-पुन्नाग-चूत्र-मंजरि-णवमालिश्र-बउल-तिलय-कणवीर. कुंद कुजग-कोरंट-पत्तदमणग-वरसुरभिगंधगंधिस्स कयग्गह-गहियकरयल-पभट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवराणस्स कुसुमणिपरस्स तत्थ चित्तं जराणुस्सेहप्पमाणमित्तं श्रोहिनिकरं करेत्ता चंदप्पभ-रयण-वइर-वेरुलिश्र-विमलदराडं कंचण मणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरु-पवर-कुदुरुक-तुरुक-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टि विणिम्मुश्रुतं वेलिश्रमयं कडच्छुओं पग्गहित्तु पयएणं धूवं दाऊण जिणवरिंदस्स सत्तट्ठ पयाइं श्रोसरित्ता दसंगुलियं यंजलिं करिश्र मत्थयमि पययो अट्ठसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुणरुत्तेहि अत्थजुत्तेहिं संथुणइ 2 ता वामं जाणु अंचेइ 2 त्ता जाव करयलपरिग्गहिग्रं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी-णमोऽत्थु ते सिद्ध-बुद्ध-णीरय-समण-सामाहिश्र-समत्त-समजोगि-सल्लगत्तण-णिब्भय-णीरागदोस-णिम्मम-णिस्संग-णीसल-माणमूरण-गुणरयण-सीलसागर-मणंतमप्प Mण धूवं दाऊण म यथो असावाम जाण अत्रामोऽत्यु ते