________________ 88] [ श्रीमंदागमसुधासिन्धुः / सप्तमो विभागः श्रायंसघरायो पडिणिक्खमइ 2 ता अंतेउरमझमझेणं णिग्गच्छइ 2 ता दसहि रायवरसहस्सेहिं सद्धिं संपरिबुडे विणीयं रायहाणि मज्झमझेणं णिग्गच्छइ 2 ता मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरइ 2 त्ता जेणेव अट्ठावए पव्वते तेणेव उवागच्छइ 2 ता अट्टावयं पव्वयं सणियं 2 दुरूहइ 2 ता मेघघणसरिणकासं देवसरिणवायं पुढविसिलावट्टयं पडिलेहेइ 2 त्ता संलेहणाझूसणाझसिए भत्तपाणपडियाइविखए. पायोवगए कालं श्रणवकंखमाण 2 विहरइ 3 / तए णं से भरहे केवली सत्तत्तरिं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमज्झे वसित्ता एगं वाससहस्सं मंडलिअरायमज्झे वसित्ता छ पुव्वसयसहस्साई वाससहस्सूणगाइं महारायमज्झे वसित्ता तेसीइ पुव्वसयसहस्साई अगारवासमज्झे वसित्ता एगं पुव्वसयसहस्सं देसूणगं केवलिपरियायं पाउणित्ता तमेव बहुपडिपुराणं सामन्त्रपरिश्रायं पाउणित्ता चउरासीइ पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउणं पाउणित्ता मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं सवणेणं णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं खीणे वेअणिज्जे पाउए णामे गोए कालगए वीइक्कते समुन्जाए छिरिण-जाइ-जरा-मरणबन्धणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिबुडे अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे 4 // इति भरतचकिचरितं // सूत्रं 71 // भरहे श्र इत्थ देवे महिड्डीए महज्जुईए जाव पलिश्रोवमट्टिईए परिखसइ, से एएण?णं गोत्रमा ! एवं वुच्चइ भरहे वासे 2 इति 1 / अदुत्तरं च णं गोयमा ! भरहस्से वासस्स सासए णामधिज्जे पराणत्ते जंण कयाइ ण श्रासि ण कयाइ णस्थि ण कयाइ ण भविस्सइ भुवि च भवइ श्र भविस्सइ अ धुवे णित्रए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे भरहे वासे 2 // सूत्रं 72 // // इति ततीयो वक्षस्कारः // 3 //