________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् / / पदं 18 ] [ 275 गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलियोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, एवं तिरिक्खजोणिणिपज्जत्तियावि 12 / एवं मणुस्सेवि मणुस्सीवि, एवं चेव देवपजत्तए जहा नेरइयपजत्तए 13 / देवीपज्जत्तिया णं भंते ! देवीपजत्तियत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं पणपन्नं पलिग्रोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई 14 / दारं 2 // सूत्रं 232 // सइंदिए णं भंते ! सइंदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! सईदिए दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-अणाइए वा अपज्जवसिए प्रणाइए सपजवसिए 1 / एगिदिए णं भंते ! एगिदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं गणतं कालं वणस्सइकालो 2 / बेइंदिए णं भंते ! बेईदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं संखेन्जं कालं 3 / एवं तेइंदियचउरिदिएवि 4 / पंचिंदिए णं भंते ! पंचिंदिपत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं साइरेगं 5 / अणिदिए णं पुच्छा, गोयमा ! साइए अपजवसिए 6 / सइंदियअपजत्तए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, एवं जाव पंचिंदियअपजत्तए 7 / सइंदियपज्जत्तए णं भंते ! सइंदियपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेगं 8 / एगिदियपज्जत्तए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेजाई वाससहस्साई 1 / बेइंदियपज्जत्तए णं भंते ! बेइंदियपज्जत्तएत्ति पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेजवासाई 10 / तेइंदियपजत्तए णं भंते ! तेइंदियपजत्तएत्ति पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं संखेजाई राइंदियाई 11 / चउरिदियपजत्तए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेजा मासा 12 / पंचिंदियपजत्तए णं भंते ! पंचिंदियपजत्तएत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं दियपजत्तए / अंतोमुत्तं गोथमा ! ते