________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् / / पदं 17-4 ] [ 263 श्राभिणिबोहिय-सुयनाण-श्रोहिनाणेसु होजा, ग्रहवा तिसु होमाणे आभिणिबोहिय-सुयनाण-मणपजवनाणेसु होजा, चउसु होमाणे श्राभिणिवोहियनाण-सुयनाण-योहिनाण-मणपजवनाणेसु होजा, एवं जाव पम्हलेसे 1 / सुक्कलेसेणं भंते ! जीवे कइसु नाणेसु होजा ?, गोयमा ! दोसु वा तिसु वा चउसु वा एगम्मि वा होजा, दोसु होमाणे श्राभिणिबोहिय-नाणसुयनाणे, एवं जहेब कराहलेसाणं तहेव भाणियव्वं जाव चउहि, एगंमि होमाणे (नाणे होजा,) एगंमि केवलनाणे होजा // सूत्रं 224 // पनवणाए भगवईए लेस्सापए तइयो उद्देसयो समत्तो॥ // इति सप्तदशम-पदे तृतीय उद्देशकः // 17-3 // // अथ श्री लेश्याख्य-सप्तदशम-पदे चतुर्थोद्देशकः // परिणाम-बन्न-रस-गंध-सुद्ध-अपसत्थ-संकिलिट्ठराहा। गति-परिणामपदेसोगाढ-वग्गण-ठाणाण-मप्पबहुं // 1 // कइ णं भंते ! लेसायो पन्नत्तायो ?, गोयमा ! छल्लेसायो पन्नत्तायो, तंजहा-कराहलेसा जाव सुकलेसा 1 / से नूणं भंते ! कराहलेसा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए तावरणताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुजो 2 परिणमति ? हंता गोयमा ! कराहलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताएं जाव भुजो 2 परिणमति 2 / से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-कराहलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुजो 2 परिणमति ?, गोयमा ! से जहा नामए खीरे दूसिं पप्प सुद्धे वा वत्थे रागं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए भुजो 2 परिणमइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-कराहलेसा नीललेसं पप्प तारूवत्ताए जाव भुजो 2 परिणमइ, एवं एतेणं अभिलावेणं नीललेसा काउलेसं पप्प काउलेसा तेउलेसं पप्प तेउलेसा पम्हलेसं पप्प पम्हलेसा सुकलेसं पप्प जाव भुजो 2 परिणमइ 3 / से नूणं भंते ! कराहलेसा नीललेसं काउलेसं तेउलेसं पम्हलेसं