________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-मूत्रम् पदं 15-1 ] [ 215 ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीयो चिणिस्संति?, गोयना ! चाहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीयो चिणिस्संति, तंजहा–कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं, एवं नेरइया जाव वेमाणिया 3 / जीवा णं भंते ! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडियो उवचिणिंसु ?, गोयमा ! चाहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीयो उवचिणिसु, तंजहा–कोहेणं माणेणं मायाए लोभेणं, एवं नेरइया जाव वेमाणिया 4 / जीवा णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! चउहि ठाणेहिं उवचिणंति जाव लोभेणं, एवं नेरइया जाव वेमाणिया, एवं उवचिणिसंति 5 / जीवा णं भंते ! कतिहिं अणेहिं अट्ठ कम्मपगडीयो बंधिसु ?, गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं, अट्ठ कम्मपगडियो बंधिसु, तंजहा-कोहेणं माणेणं जाव लोभेणं, एवं नेरइया जाव वेमाणिया 6 / बंधिंसु बंधति बंधिस्संति, उदीरेंसु उदीरंति उदीरिस्संति, वेदिसु वेदेति वेदइस्संति, निजरिंसु निजरेंति निजरिस्संति, एवं एते जीवाइया वेमाणियपजवसाणा अट्ठारस दंडगा जाव वेमाणिया, निजरिंसु निजरेंति निजरिस्संति ७।-श्रातपतिट्रिय खेत्तं पडुच्चणंताणुबंधि श्राभोगे / चिण उवचिण बंध उदीर वेद तह निजरा चेव // 1 // सूत्रं 110 // इति परणवणाए भगवईए चोदसमं कसायपयं समत्तं // // इति चतुर्दशं पदम् // 14 // // अथ श्री इन्द्रियाख्य-पञ्चदशमपदे प्रथमोद्देशकः // संगणं बाहल्लं पोहत्तं कतिपदेस योगाढे / अप्पाबहु पुट्ठ पविट्ठ विमय अणगार अाहारे // 1 // अदाय असी य मणी दुद्ध पाणे तेल फासिय वसा य / कंबल थूणा थिग्गल दीवोदहि लोगऽलोगे य॥ 2 // कति णं भंते ! इंदिया पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंच इंदिया पन्नत्ता, तंजहासोतिदिए चक्खिदिए घाणिदिए जिभिदिए फासिदिए 1 / सोतिदिए णं भंते ! किंसंठिए पन्नत्ते ?, गोयमा ! कलंबुया-पुष्फ-संगणसंठिते पन्नत्ते 2 /