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________________ भीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् / / पदं 5 ] | [ 137 उकोस-गुणकालएवि, अजहन्न-मणुकोस-गुणकालएवि एवं चेव, णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए, एवं पंच वन्ना दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा भाणियव्वा 1 / जहन्नाभिणिवोहिय-नाणीणं भंते ! बेइंदियाणं केवइया पजवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! अणंता पजवा पन्नत्ता 10 / से केण?णं भंते ! एवं वुचइजहन्नाभिणियोहिय-नाणीणं बेइंदियाणं अणंता पजवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! जहन्नाभिणिवोहियणाणी बेईदिए जहन्नाभिणिवोहियणाणिस्स बेइंदियस्स दवट्ठयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले योगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए ठिईए तिट्ठाणवडिए वन्नगंध-रसफास-पजवेहिं छट्ठाणवडिए ग्राभिणिवोहिय-णाणपनवेहिं तुल्ले सुयणाणपजवेहिं छट्ठाणवडिए अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए से एएगटेणं जाव पन्नत्ता 11 / एवं उक्कोसाभिणिबोहियणाणीवि, अजहन्न मणुकोसाभिणिवोहिय-णाणीवि एवं चेव, नवरं सट्टाणे छट्टाणवडिए 12 / एवं सुयनाणीवि सुयअन्नाणीवि मतिअन्राणीवि अचवखुदंसणीवि, णवरं जत्थ णाणा तत्थ अन्नाणा नत्थि, जत्थ अन्नाणा तत्थ णाणा नस्थि, जत्थ दंसणं तत्थ णाणावि अन्नाणावि, एवं तेइंदियाणवि, चउरिदियाणवि एवं चेव, णवरं चखुदंसणं अब्भहियं 13 // सू० 114 // जहन्नोगाहणगाणं भंते ! पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! श्रणंता पजवा पन्नत्ता 1 / से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ जहन्नोगाहणगाणं पंचिंदिय-तिरिक्ख जोणियाणं अणंता पजवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! जहन्नोगाहणए पंचिंदियतिरिक्ख जोणिए जहन्नोगाहणयस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले योगाहणट्टयाए तुल्ले ठिईए तिट्ठाणवडिए वन्नगंध-रसफास-पजवेहिं दोहिं नाणेहिं दोहिं अन्नाणेहिं दोहिं दसणेहिं छट्ठाणवडिए से एएणतुणं जाव पन्नत्ता 2 / उक्कोसोगाहणएवि एवं चेव, णवरं तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिए, जहा उक्कोसोगाहणए तहा अजहन्न-मणुकोसोगाहणएवि, णवरं योगाहण 17
SR No.004367
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size10 MB
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