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________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् / / पदं 5 ] [ 126 लवन्नपजवेहिं सुब्भिगंधपजवेहिं दुन्भिगंधपजवेहिं तित्तरसपजवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसायरसपनवेहिं अंबिलरसपज्जवेहिं महुररसपजवेहिं कक्खडफासपजवेहिं मउयफासपजवेहिं गरुयफासपज्जवेहिं लहुयफासपजवेहिं सीयफासपजवेहि उसिणफासपजवेहिं निद्धफासपजवेहि लुक्खफासपजवेहिं याभिणिवोहियणाणपज्जवेहिं सुयनाणपज्जवेहिं योहिनाणपज्जवेहिं मइअन्नाणपजवेहिं सुययन्नाणपजवेहिं विभंगनाणपज्जवेहिं चक्खुदंसणपजवेहिं अचक्खुदंसणपजवेहिं योहिदसणपजवेहिं छट्ठाणवडिए, से एएण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ-असुरकुमाराणं अणंता पजवा पन्नत्ता 2 / एवं जहा नेरझ्या, जहा असुरकुमारा तहा नागकुमारावि जाव थणियकुमारा 3 // सू० 105 // पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया पन्जवा पत्नत्ता ?, गोयमा ! अणंता पजवा पत्नत्ता 1 / से केणटेणं भंते ! एवं वुचइ पुढविकाइयाणं अणंता पजवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! पुढविकाइए पुढविकाइयस्स दवट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले योगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अभहिए, जइ हीणे असंखिजइभागहीणे वा संखिज्जइभागहीणे वा संखिजइगुणहीणे वा असंखिज्जइगुणहीणे वा, यह अभहिए असंखिज्जइभागअब्भहिए वा संखिजइभागअब्भहिए वा संखिजगुणग्रभहिए वा असंखिजगुणयभहिए वा, ठिईए तिट्ठाणवडिए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए, जइ हीणे असंखिज्जभागहीणे वा संखिजभागहीणे वा संखिजगुणहीणे वा, यह अभहिए असंखिजइभागअब्भहिए वा संखिजइभागभहिए वा संखिजगुणअभहिए वा वन्नेहिं गंधेहिं रसेहिं फासेहिं मइअन्नाणपजवेहिं सुययन्नाणपजवेहिं अचक्खुदंसणपजवेहिं छट्ठाणवडिए से एएण?णं जाव पन्नत्ता 2 / भाउकाइयाणं भंते ! केवइया पजवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! अणंता पजवा पन्नत्ता 3 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ थाउकाइयाणं अणंता पजवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! अाउकाइए बाउकाइयस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले श्रोगाहणट्ठयाए 17
SR No.004367
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size10 MB
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