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________________ श्रीमद्-विपाकसूत्रम् : श्रु० 1: अध्ययन 1 ] [ 437 वासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वाते वेयड्डगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पचायाहिति, से णं तत्थ सीहे भविस्तति अहम्मिए जाव साहसिए सुबहु पावकम्म जाव समजिणति जाव समजिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्टितीएसु जाव उववजिहिति 1 / से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववजिहिति, तत्थ णं कालं किच्चा दोचाए पुढवीए उकोसेणं तिनि सागरोबमाई, से णं ततो अणंतरं उब्वट्टित्ता पक्खीसु उववजिहिति, तत्थवि कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए सत्त सागरोवमाई, से णं ततो सीहेसु य, तयाणंतरं चोत्थीए, उरगो, पंचमीए, इत्थी, छट्ठीए, मणुयो, अहे सत्तमाए, ततोऽणंतरं उबट्टित्ता से जाइं इमाई जलयर-पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणियाणं मच्छ-कच्छभ-गाह-मगर-सुसुमारादीणं श्रद्धतेरस जातिकुल-कोडिजोणिप्पमुह-सयसहस्साई तत्थ णं एगमेगंसि जोणीविहाणांसि अणेग-सतसहस्स. खुत्तो उदाइत्ता 2 तत्व भुजो 2 पचायाइस्सति 2 / से णं ततो उव्वट्टित्ता एवं चउपएसु उरपरिसप्पेसु भुयपरिसप्पेसु खहयरेसु चउरिदिएसु तेइंदिएसु बेइंदिएसु वणप्फइएसु कडुयरुखेसु कडयदुद्धिएसु वाउकायेसु तेऊकायेसु श्राऊकायेसु पुढवीकायेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता 2 तत्थेव भुजो 2 पञ्चायाइस्सति, से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्टपुरे नगरे गोणत्ताए पञ्चायाहिति 3 / से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे अन्नया कयाइं पढमपाउसंसि गंगाए महानईए खलीण(य)मट्टियं खणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुपइटे पुरे नगरे सेट्टिकुलंसि पुमत्ताए पञ्चायाइस्सति 4 / से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे जाव जोवणगमणुपत्ते तहाख्वाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोचा निसम्म मुडे भवित्ता अगाराथो श्रणगारियं पब्वइस्सति, से णं तत्थ अणगारे भविस्सति ईरियासमिए जाव बंभयारी, से णं तत्थ बहुई वासाइं सामनपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिवकते समाहिपत्ते कालमासे
SR No.004365
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, agam_anuttaropapatikdasha, agam_prashnavyakaran, & agam_vipakshrut
File Size12 MB
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