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________________ 1438 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः स चतुर्थी विमाना कालं किचा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति 5 / से णं ततो अणंतर चयं चइता महाविदेहे वासे, जाई इमाइं कुलाई भवंति अड्डाई जहा दढपइन्ने सा चेव वत्तव्वया कलायो नाव सिज्झिहिति 6 / एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पत्नत्तेत्तिवमि सेवं भंते ! 2 भगवं गोयमे जाव विहरति 7 // सू० 6 // // 1 // // इति प्रथममध्ययनम् // श्रु० 1 0 1 // // 2 // अथ श्री उज्झिनकाख्यं द्वितीयमध्ययनम् // जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपतेणं दुहविवागाणं पढमस्स श्रज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अभयणस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के श्र? पराणत्ते ?, तते णं से सुहम्मे श्रणगारे जंबू श्रणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! ते णं काले. णं ते णं समए णं वाणियगामे नामं नयरे होत्था रिद्धिस्थिमियसमिद्धे, तस्स णं. वाणियगामस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए दुईपलासे नाम उजाणे होत्था, तत्थ णं दूइपलासे उजाणे सुहम्मस्त जवखस्स जक्खाययणे होत्था, तत्थ णं वाणियगामे मित्ते नामं राया होत्था वन्नयो, तस्स णं मित्तस्स रन्नो सिरीनामं देवी होत्था वगणो 1 / तत्थ णं वाणियगामे कामज्भया नाम गणिया होत्था, अहीण पुराणपंचिंदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माणप्पमाण-पडिपुन्न-सुजाय-सव्वंगसुदरंगी सुरूवा बावत्तरिकलापंडिया चउसट्ठि-गणिया-गुणोववेया एगणतीसविसेसे रममाणी एकवीस-रतिगुणप्पहाणा बत्तीस-पुरिमोवयार-कुसला णवंगसुत्त-पडिबोहिया अट्ठारस-देसीभासा-विसारया सिंगारागार-चारुबेसा गीयरतिय-गंधव-नट्टकुसला संगयगयभणिय-विहिय-विलास-सललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयार-कुसला सुंदरथण
SR No.004365
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1976
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, agam_anuttaropapatikdasha, agam_prashnavyakaran, & agam_vipakshrut
File Size12 MB
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