________________ 39. ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्थो विमागः - // 4 // अथ अब्रह्माश्रवाख्यं चतुर्थमध्ययनम् // जंबू ! अबंभं च चउत्थं सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पत्थणिज्ज, पंक-पणय-पास-जालभूयं, थी-पुरिस-नपुंस-वेद-चिंधं, तव-संजम बंभचेर-विग्धं, भेदायतण-बहुपमाद-मूलं, कायर-कापुरिस-सेवियं, सुयणजण-वज्जणिज्जं, उह-नरय-तिरिय-तिलोक-पइट्टाणं, जरा-मरणरोग-सोग-बहुलं, वध-बंधविघात-दुविधायं, दंसण-चरित्त-मोहस्स हेउभूयं, चिरपरिगयमणुगयं दुरंत चउत्थं अधम्मदारं // सूत्र 13 // तस्स य णामाणि गोन्नाणि इमाणि होति तीसं, तंजहा-अबभं 1 मेहुणं 2 चरंतं 3 संसग्गि 4 सेवणाधिकारो 5 संकप्पो 6 वाहणा पदाणं 7 दप्पो 8 मोहो 1 . मणसंखोभो 10 अणिग्गहो 11 बुग्गहो 12 विघात्रो 13 विभंगो 14 विन्भमो 15 अधम्मो 16 असीलया 17 गामधम्मतित्ती 18 रती 11 रागचिंता 20 कामभोगमारो 21 वेरं 22 रहस्सं 23 गुन्झ 24 बहुमाणो 25 बंभचेरविग्धो 26 वावत्ति 27 विराहणा 28 पसंगो 21 कामगुणो. 30 त्ति विय तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तीसं // सूत्रं 14 // तं च पुण निसेवंति सुरगणा सबच्छरा मोहमोहियमती, असुर-भुयगगरुल-विज्जु-जलण-दीव-उदहि-दिसि-पवण-थणिया, अणनि-पणवंनिय-इसिवादिय-भूयवादिय-कंदिय-महाकंदिय-कूहंड-पयंगदेवा, पिसायभूय-जक्ख-रक्खस-किनर-किंपुरिस-महोरग-गंधव्वा, तिरिय-जोइसविमाणवासि-मणुयगणा, जलयर-थलयर-खहयरा य, मोहपडिबद्धचित्ता, अवितराहा, कामभोगतिसिया, तराहाए बलवईए महइए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबभे उस्सरणा तामसेण भावेण अणुम्मुका, दंसणचरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंति 1 / अन्नोऽन्नं सेवमाणा, भुज्जो असुरसुर-तिरिय-मणु-भोगरति-विहार-संपउत्ता य चकवट्टी सुरनरवतिसक्या, सुखरुव्व देवलोए भरह-णग-णगर-णियम-जणवय-पुरवर-दोणमुह 27 विराणा 26 जाण होति तीस. असुर भुयग