________________ श्रीमत्प्रस्नव्याकरणदशाङ्ग-त्रम् : अध्ययनं / ] लोभा, बहुमोहा, धम्म-जन्न-सम्मत्त-परिभट्ठा, दारिदोवद्दवाभिभूया, निच्चं परकम्मकारिणो जीवणत्थरहिया, किविणा, परपिंडतकका, दुक्खलद्धाहारा, अरस-विरस-तुच्छ-कयकुच्छिपरा, परस्स पेच्छंता, रिद्धिसकार-भोयण-विसेस–समुदयविहिं निदंता, अप्पकं कयंतं च परिखयंता, इह य पुरेकडाई कम्माइं पावगाई विममासो सोएण डज्झमाणा, परिभूता होति। सत्तपरिवजिया य छोभा-सिप्पकला-समयसत्थपरिवजिया, जहाजायपसुभूया, अवियत्ता, णिच-नीयकम्मोवजीविणो, लोयकुच्छणिजा मोघमणोरहा, निरासबहुला, श्रासापास-पडिबद्धपाणा, अत्थोपायाण-कामसोक्खे य लोयसारे होति 17 / अफलवंतकाय सुट्ठविय उज्जमंता,तदिवसेसुज्जुत्त-कम्म-कयदुक्ख संउत्रियसिस्थपिंड-संचया पक्खीण-दव्वसारा, निच्चं अधुव-धण-धराण-कोस-परिभोगविवज्जिया, रहिय-काम-भोग-परिभोग-सव्वसोक्खा, पसिरि-भोगोवभोगनिस्साण-मग्गण-परायणा, वरागा, अकामिकाए विणेति 18 / दुक्खं णेव सुहं णेव निव्वुतिं उबलभंति, अच्चंत-विपुल-दुक्ख-सय-संपलित्ता परस्स दव्वेहि जे अविरया एसो सो अदिराणादाणस्स फलविवागो इहलोइयो, पारलोइत्रो, अप्पसुहो, बहुदुक्खों, महब्भश्रो बहुरयप्पगाढो, दारुणो, ककसों, असायो, वाससहस्सेहिं मुच्चति, न य अवेयइत्ता अस्थि उ मोक्खोत्ति, एवमाहंसु णायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरखरनामधेज्जो कहेसी य श्रदिराणादाणस्स फलविवागं एयं तं ततियंपि अदिन्नादाणं हर-दहमरण-भय-कलुस-तासगा-परसंतिकभेज-लोभमूलं एवं जाव चिरपरिगतमणुगतं दुरतं तिबेमि 16 // 3 // सू० 12 // ततियं अहम्मदारं समत्तं // // इति तृतीयमध्ययनम् // 3 //