________________ 270 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : चतुर्थो विभागः विहरित्तए / एवं सम्पेहेइ 2 कल्लं जाव जलंते विउलं तहेव जिमियभुत्तुत्तरागए तं मित्त जाव विउलेणं पुष्फ 5 सकारेइ सम्माणेइ 2 तस्सेव मित्त जाव पुरयो जेट्टपुत्तं सद्दावेइ 2 एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता ! अहं वाणियगामे बहूणं राईसर जहा चिन्तियं जाव विहरित्तए, तं सेयं खलु मम इदाणिं तुमं सयस्स कुडुम्बस्स पालम्बणं 4 ठवेत्ता जाव विहरित्तए 2 / तए णं जेट्टपुत्ते पाणन्दरस समणोवासगस्स तहत्ति एयमट्ट विणएणं पडिसुणेइ, तए णं से प्राणन्दे समणोवासए तस्सेव मित्त जाव पुरयो जेट्टपुत्तं कुडुम्बे ठवेइ 2 एवं वयासी-मा णं देवाणुप्पिया ! तुम्भे अजप्पभिई केई मम बहूसु कज्जेसु जाव आपुच्छउ वा पडिपुच्छउ वा ममं श्रट्टाए असणं वा 4 उवक्खडेउ वा उवकरेउ वा 3 / तए णं से प्राणन्दे समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्तनाइ यापुच्छई 2 सयानो गिहायो पडिणिक्खमइ 2 वाणियगामं नयरं मझमज्झणं निग्गच्छइ 2 जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे जेणेव नायकुले जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ 2 पोसहसालं पमज्जइ 2 उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ 2 दब्भसंथारयं संथरइ, दम्भसंथारयं दुरूहइ 2 पोसहसालाए पोसहिए दम्भसंथारोवगए समणस्स भगवश्री महावीरस्स अन्तियं धम्मपराणत्तिं उवसम्पजित्ता णं विहरइ 4 // सू० 12 // तए णं से श्राणन्दे समणोवासए उवासगपडिमानो उवसम्पजिता णं विहरइ, पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं ग्रहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म कारणं फासेइ, पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्ते(टे)इ अाराहेइ 1 / तए णं से आणन्दे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं एवं तच्चं चउत्थं पञ्चमं छटुं सत्तमं अट्ठमं नवमं दसमं एकारसमं जाव बाराहेइ 2 // सू० 13 // तए णं से आणन्दे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहियेणं तवोकम्मेणं सुक्के जाव किसे धमणिसन्तए जाए 1 / तए णं तस्स प्राणन्दस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाई पुबरत्ता जाव