________________ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग-सूत्रम् : अध्ययनं 16 ] [ 166 तए णं से दूर राहाते जाव अलंकार-विभूसिए सरीरे चाउग्घंटे बासरहं दुरुहइ 2 बहुहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध जाव गहियाऽऽउहपहरणेहिं सद्धिं संपरिखुडे कंपिल्लपुरं नगरं मझमज्झेणं निग्गच्छति, पंचालजणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव देसप्पते तेणेव उवागच्छइ, सुरद्वाजणवयस्स मझमझेणं जेणेव बारवती नगरी तेणेव उवागच्छइ 2 बारवई नगरिं मज्झमझेणं अणुपविसइ 2 जेणेव कराहस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ 2 ता चाउग्घंटे श्रासरहं ठवेइ 2 रहायो पचोरुहति 2 मणुस्त-बग्गुरा-परिक्खित्ते पायचार-विहारचारेणं जेणेव कराहे वासुदेव तेणेव उवागच्छति 2 कराहं वासुदेवं समुद्दविजय-पामुक्खे य दस दसारे जाव बलवग-साहस्सीयो करयल तं चेव जाव समोसरह 2 / तते णं से कराहे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयम8 सोचा निसम्म हट्ठ जाव हियए तं दूयं सकारेइ सम्माणेइ 2 पडिविसज्जेइ 3 / तए णं से कराहे वासुदेवे कोडवियपुरिसं सदावेइ 2 एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि, तए णं से कोडबियपुरिसे करयल जाव कराहस्स वासुदेवस्स एयमट्ठ पडिसुणेति 2 जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाझ्या भेरी तेणेव उवागच्छइ 2 सामुदाइयं भेरि महया 2 सद्दे णं तालेइ, तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महसेणपामुक्खायो छप्पराणं बलवगसाहस्सीयो राहाया जाव विभूसिया जहा विभव-इड्डिसकार-समुदएणं अप्पेगइया हयगया जाव पायविहारचारेणं जेणेव कराहे वासुदेवे तेणेव उवागच्छति 2 करयल जाव कराहं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धाति, तए णं से कराहे वासुदेवे कोडुबियपुरिसे सदावेति 2 एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हयगय जाव पचप्पिणंति 4 / तते णं से कराहे वासुदेवे जेणेव