________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 15 :, उद्देशकः 1 ] [515 पन्नत्ते पाईणपडीणायते उदीण-दाहिण-विच्छिन्ने जहा गणपदे जाव पंच वडेंसगा पन्नता, तंजहा-असोगवडेंसए जाव पडिरूवा, से णं तत्थ देवे उववजइ, से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिवाई भोग जाव चइत्ता सत्तमे सनिगमे जीवे पञ्चायाति 12 / से णं तत्थ नवराहं मासाणं बहुपडिपुनाणं अट्ठमाण जाव वीतिकंतागां सुकुमालग-भद्दलए मिउ-कुंडल(कुंतल)कुचिय-केसए मट्ठ-गंड-तल-कन्नपीडए देवकुमार-सप्पभए दारए पयायति 13 / से णं अहं कासवा! तेणं अहं श्राउसो ! कासवा ! कोमारिय-पव्वजाए कोमारएणं बंभरवासेणं अविद्धकन्नए चेव संखाणं पडिलभामि 2 इमे सत्त पउट्ट-परिहारे परिहरामि, तंजहा-एोजगस्स मल्लरामस्स मल्लमंडियस्स रोहस्स भारदाइस्स अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स 14 / तत्थ णं जे से पढमे पउट्टपरिहारे से णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया मंडियकुच्छिसि चेइयंसि उदाइम्स कुडियायणस्स सरीरं विप्पजहामि 2 एणेजगस्स सरीरगं अणुप्पविसामि 2 बावीसं वासाइं पढमं पउट्टपरिहारं परिहरामि 15 / तत्थ णं जे से दोच्चे पउट्ट. परिहारे से उद्दडपुरस्स नगरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेइयंसि एोजगस्स सरीरगं विप्पजहामि 2 ता मल्लरामस्स सरीरगं अणुप्पविसामि 2 एकवीसं वासाइं दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि 16 / तत्थ णं जे से तच्चे पउट्टपरिहारे से णं चंपाए नगरीए बहिया अंगमंदिरंमि चेइयंसि मल्लरामस्स सरीरगं विप्पजहामि 2 मंडियस्स सरीरगं अणुप्पविसामि 2 वीसं वासाई तवं पउट्टपरिहारं परिहरामि 17 / तत्थ णं जे से चउत्थे पउट्टपरिहारे से णं वाणारसीए नगरीए बहिया काममहावणंसि चेइयंसि मंडियस्स सरीरगं विप्पजहामि 2 रोहस्स सरीरगं अणुप्पविसामि 2 एकूणवीसं बासाइ य चउत्थं पउट्टपरिहारं परिहरामि 18 / तत्थ णं जे से पंचमे पउट्टपरिहारे से णं बालभियाए नगरीए बहिया पत्तकालगयंसि चेइयंसि