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________________ 462 ] ( श्रीमदागमसुधासिन्धुः / तृतीयो विभागः देवराया पुरिसस्स सीसं पाणिणा असिणा छिदित्ता कमंडलुमि पक्खिवित्तए ?, हंता पभू 1 / से कहमिदाणि पकरेति ?, गोयमा ! बिंदिया 2 च णं पक्खिवेजा भिंदिया भिंदिया च णं पक्खिवेजा कोट्टिया कोट्टिया च णं पक्खिवेजा चुन्निया चुन्निया च णं पक्खिवेज्जा तो पच्छा खिप्पामेव पडिसंघाए जा नो / णं तस्स पुरिसस्स किंचि श्राबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएजा छविच्छेदं पुण करेति, एसहुमं च णं पविखवेज्जा 2 ॥सूत्रं 532 / / अस्थि णं भंते ! जंभया देवा जंभया देवा ?, हंता अस्थि 1 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ जंभया देवा जंभया देवा ?, गोयमा ! जंभगा णं देवा निच्चं पमुइयपक्कीलिया कंदप्परतिमोहणसीला जन्नं ते देवे कुद्धे पासेजा से णं पुरिसे महंतं श्रयसं पाउणिज्जा जे णं ते देवे तु? पासेजा से णं महंतं जसं पाउणेज्जा, से तेणटेणं गोयमा ! जंभगा देवा 2, 2 / कतिविहा णं भंते ! जंभगा देवा पराणत्ता ?, गोयमा ! दसविहा पराणत्ता, तंजहा-यन्नजंभगा पाण-जंभगा वत्थ-जंभगा लेण-जंभगा सयण जंभगा पुष्फ-जंभगा फल-जंभगा पुप्फफल-जंभगा विजा-जंभगा अवियत्त-जंभगा 3 / जंभगा णं भंते ! देवा कहिं वसहिं उति ?, गोयमा ! सव्वेसु चेव दीहवेयड्ढ सु चित्तविचित्त-जमग-पव्वएसु कंचण-पव्वएसु य एत्थ णं जंभगा देवा वसहि उवेंति 4 / जंभगाणं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पराणत्ता ?, गोयमा ! एगं पलिग्रोवमं ठिती पराणत्ता 5 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव। विहरति 6 // सूत्र 533 // // इति चतुर्दशमशतके अष्टम उद्देशकः // 14-8 // // अथ चतुर्दशमशतके अणगाराभिधः नवमोद्देशकः // __यणगारे णं भंते ! भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ न पासइ तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ पासइ ?, हंता गोयमा ! श्रणगारे
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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