________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 14 :: उद्देशका 1] [477 अणंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति तिरिक्खजोणियाउयं माणुस्साउयं देवाउयं पकरेंति ?, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति 4 / परंपरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति ?, गोयमा ! नो नेरझ्याउयं पकरेंति तिरिक्खजोणियाउयंपि पकरेंति मणुस्माउयंपि पकरेंति नो देवाउयं पकरेंति 5 / अणंतरपरंपर-अणुववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति पुच्छा, नो नेरझ्याउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति 6 / एवं जाव वेमाणिया, नवरं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परंपरोववन्नगा चत्तारिवि ग्राउयाइं पन्नत्ताई, सेसं तं चेव 2, 7 / नेरइया णं भंते ! किं अणंतरनिग्गया परंपरनिग्गया अनंतरपरंपर-निग्गया ?, गोयमा ! नेरझ्या णं अणंतरनिग्गयावि जाव अणंतरपरंपर-निग्गयावि 8 / से केण?णं जाव अणिग्गयावि ?, गोयमा ! जे णं नेरइया पढमसमयनिग्गया ते णं नेरइया अणंतरनिग्गया, जे णं नेरइया अपढमसमयनिग्गया ते णं नेरइया परंपरनिग्गया, जे णं नेरइया विग्गहगतिसमावनगा ते णं नेरइया अणंतरपरंपरणिग्गया, से तेण?णं गोयमा ! जाव अणिग्गयावि, एवं जाव वेमाणिया 3, 1 / अणंतरनिग्गया णं भंते ! नेरझ्या किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति ?, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति 10 / परंपरनिग्गया णं भंते ! नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति ?, पुच्छा, गोयमा ! नेरइयाउयंपि पकरेंति जाव देवाउयंपि पकरेंति 11 / अणंतरपरंपर-अणिग्गया णं भंते ! नेरइया पुच्छा, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति, एवं निरवसेसं जाव वेमाणिया 4, 12 / नेरझ्या णं भंते! किं अणंतरं खेदोववनगा परंपर-खेदोववन्नगा श्रणंतरपरंपर-खेदाणुववन्नगा ?, गोयमा ! नेरइया, एवं एएणं अभिलावेणं तं चेव चत्तारि दंडगा भाणियव्वा 13 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरइ 14 ॥सूत्रं 502 // चोदसमसयस्स पढमो // 5 ॥इति चतुर्दशमशतके प्रथम उद्देशकः // 14-1 //