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________________ 476 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / तृतीयो विभागः रायगिहे जाव एवं वयासी-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरमं देवावासं वीतिक्कते परमं देवावासमसंपत्ते एत्थ णं अंतरा कालं करेजा तस्स णं भंते ! कहिं गती कहिं उववाए पन्नत्ते ?, गोयमा ! जे से तत्थ परियस्सयो तल्लेसा देवावासा तहिं तस्स उववाए पन्नत्ते, से य तत्थ गए विराहेजा कम्मलेस्सामेव पडिमडइ, से य तत्थ गए नो विराहेजा एयामेव लेस्सं उवसंपजित्ताणं विहरति 1 / अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरमं असुरकुमारावासं वीतिक्कते परमअसुरकुमारासंपत्ते, एवं चेव एवं जाव थणियकुमारावासं जोइसियावासं एवं वेमाणियावासं जाव विहरइ 2 / // सूत्रं 500 // नेरइयाणं भंते ! कहं सीहा गती कहं सीहे गतिविसए पराणत्ते ?, गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जाव निउण-सिप्पोवगए श्राउट्टियं बाहं पसारेजा पसारियं वा बाहं अाउंटेजा विक्खिगणं वा मुट्ठि साहरेजा साहरियं वा मुट्ठि विक्खिरेजा उन्निमिसियं वा अच्छि निम्मिसेज्जा निम्भिसियं वा अछि उम्मिसेजा, भवे. एयारूवे ?, णो तिण? सम8, नेरइया णं एगसमएण वा दुसमएण वा तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जंति, नेरइयाणं गोयमा ! तहा सीहा गती तहा सीहे गतिविसए पराणत्ते एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं एगिदियाणं चउसमइए विग्गहे भाणियव्वे, सेसं तं चेव // सूत्रं 501 // नेरइया णं भंते ! कि अणंतरोववन्नगा परंपरोववन्नगा अणंतर-परंपर-अणुववनगा ?, गोयमा ! नेरइया अणंतरोववन्नगावि परंपरोववन्नगावि अणंतरपरंपर-श्रणुववन्नगावि 1 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ जाव अणंतरपरंपर-अणुववन्नगावि ?, गोयमा ! जे णं नेरइया पढमसमयोववन्नगा ते णं नेरइया अणंतरोववन्नगा, जे णं नेरइया अपढम-समयोववन्नगा ते णं नेरइया परंपरोववन्नगा, जे णं नेरइया विग्गहगइ-समावन्नगा ते णं नेरइया अणंतरपरंपर-अणुववन्नगा, से तेण?णं जाव अणुववन्नगावि 2 / एवं निरंतरं जाव वेमाणिया 1, 3 /
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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