________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतक 14 : उद्देशकः 1 ] [ 475 बभूए पासादीए 4 एवामेव अणगारेवि भावियप्पा वणसंडकिचगएणं अप्पाणेणं उड्डे वेहासं उप्पाएजा सेसं तं चेव 15 / से जहानामए-पुक्खरणी सिया चउकोणा समतीरा अणुपुव्व-सुजाय जाव सदुन्नइय-महुरसर-णादिया पासादीया 4 एवामेव अणगारेवि भावियप्पा पोक्खरणीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढ वेहासं उप्पराजा ?, हंता उप्पएन्जा 16 / अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाइं पभू पोक्खरणीकिचगयाइं स्वाइं विउवित्तए ?, सेसं तं चेव जाव विउविस्संति वा 17 / से भंते ! किं मायी विउव्वति अमायी विउव्वति ?, गोयमा ! मायी विउव्वइ नो श्रमायी विउव्वइ, मायी णं तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कते एवं जहा तइयसए चउत्थुद्दे सए जाव अस्थि तस्स श्राराहणा 18 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइत्ति 11 // सूत्रं 418 // . // इति त्रयोदशमशतके नवम उद्देशकः // 13-9 // // अथ त्रयोदशमशतके समुद्घाताभिधः दशमोद्देशकः // . कति णं भंते ! छाउमत्थिय-समुग्घाया पन्नत्ता ?, गोयमा ! छ छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता, तंजहा-वेयणा-समुग्घाए एवं छाउमस्थिय-समुग्घाया नेयव्वा जहा पन्नवणाए जाव श्राहारग-समुग्घायेत्ति 1 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरइ 2 // सूत्रं 411 // 13-10 // तेरसमं सयं समत्तं // // इति त्रयोदशमं शतकम् // 13 // // अथ चतुर्दशमशतके चरमाभिधः प्रथमोद्देशकः // ___ चर 1 उम्माद 2 सरीरे 3 पोग्गल 4 अगणी 5 तहा किमाहारे * 6 / संसिट्ठ 7 मंतरे खलु 8 श्रणगारे 1 केवली चेव 10 // 1 //