________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतकं 13 : उद्देशकः 4 ] [ 463 8 ॥सूत्रं 484 // एयंसि णं भंते ! धम्मस्थिकायंसि अधम्मत्थिकायंसि श्रागासस्थिकायंसि चकिया केई श्रासइत्तए वा चिट्टित्तए वा निसीइत्तए वा तुइट्टित्तए वा ?, नो इण? समढे, अणंता पुण तत्थ जीवा योगाढा 1 / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ एतसि णं धम्मत्थिकायंसि जाव भागासथिकायंसि णो चक्किया केई श्रासइत्तए वा जाव अोगाढा ?, गोयमा ! से जहा नामए-कूडागारसाला सिया दुहयो लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा जहा रायप्पसेणइज्जे जाव दुवारवयणाई पिहेइ 2 तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं पदीवसहस्सं पलीवेजा, से नूणं गोयमा ! तायो पदीवलेस्सायो अन्नमन-संबद्धायो अन्नमन्न-पुटायो जाव अन्नमन-घडताए चिट्ठांति ?, हंता चिट्ठांति, चकिया णं गोयमा ! केई तासु पदीवलेस्सासु श्रासइत्तए वा जाव तुयट्टित्तए वा ?, भगवं ! को तिण? सम?, अणंता पुण तत्थ जीवा योगाढा, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुबइ जाव योगाढा 2 // सूत्रं 485 // कहि णं भंते ! लोए बहुसमे ? कहि णं भंते ! लोए सव्वविग्गहिए पराणत्ते ?, गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिम-हेट्ठिल्लेसु खुड्डाग-पयरेसु एत्थ णं लोए बहुसमे एत्थ णं लोए सव्वविग्गहिए पराणत्ते 1 / कहि णं भंते ! विग्गह-विग्गहिए लोए पराणत्ते ?, गोयमा ! विग्गहकंडए एत्थ णं विग्गहविग्गहिए लोए पराणत्ते 2 // सूत्रं 486 // किसंठिए णं भंते ! लोए परणत्ते ?, गोयमा ! सुपइट्ठिय-संठिए लोए पराणत्ते, हेट्ठा विच्छिन्ने मझे जहा सत्तमसए पदमुद्दे से जाव अंतं करेति 1 / एयस्स णं भंते ! अहेलोगस्स तिरियलोगस्स उड्ढलोगस्स य कयरे 2 हिंतो जाव विसेसाहिया वा ?, गोयमा ! सम्वत्थोवे तिरियलोए उड्डलोए असंखेजगुणे अहेलोए विसेसाहिए 2 / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति // सूत्रं 487 // // इति त्रयोदशमशतके चतुर्थ उद्देशकः // 13-4 // माझे जहा सत्तास्थलोगस्स उडलोगली उडलोए असा सूत्र 487 //