________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 25 / उद्देशकः 3] [715 ठियाई गेराहइ नो अठियाई गेराहइ सेसं जहा ओरालियसरीरस्स कम्मगमरीरे एवं चेव एवं जाव भावनोवि गिराहइ 5 / जाई दवाई दव्वश्रो गेगहइ ताई किं एगपएसियाई गेराहइ दुपएसियाई गेगहइ ?, एवं जहा भासायदे जाव अणुपुर्वि गेराहइ नो अणाणुपुब्बि गेराहइ, ताई भंते ! कतिदिसि गेराहइ ?, गोयमा ! निवाघाएणं जहा पोरालियस्स 6 / जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाई सोइंदियत्नाए गेराहइ जहा वेउब्वियसरीरं एवं जाव जिभिदियत्ताए फासिदियत्ताए जहा पोरालियसरीरं मणजोगत्ताए जहा कम्मगसरीरं. नवरं नियम छदिसि एवं वइजोगत्ताएवि कायजोगत्ताएवि जहा पोरालियसरीरस्स 7 / जीवे णं भंते ! जाइं दवाइं श्राणापाणत्ताए गेराहइ जहेव थोरालियसरीरत्ताए जाव सिय पंचदिसि 8 / सेवं भंते ! 2 ति जाव विहरइ 1 ! केइ चउवीसदंडएणं एयाणि पदाणि भन्नति जस्स जं अत्थि 10 // सूत्रं 723 // 25-2 // // अथ पंचविंशतितमशतके तृतीयसंस्थानोद्देशकः // ___कति णं भंते ! संगणा पराणत्ता ?, गोयमा ! छ संगणा पराणत्ता, तंजहा-परिमंडले वट्टे तसे चउरंसे आयते अणित्थंथे 1 / परिमंडला णं भंते ! संठाणा दवट्टयाए किं संखेजा असंखेज्जा अणंता ?, गोयमा ! नो संखेजा नो असंखेजा अणंता 2 / वट्टा णं भंते ! संगणा एवं चेव एवं जाव अणित्थंथा एवं पएसट्टयाएवि 3 / एएसि णं भंते ! परिमंडल-वट्टतंस-चउरंस-प्रायत-अणित्यंथाणं संठाणाणं दवट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्रयाए कयरे२हिंतो जाव विसेसाहिया वा ?, गोयमा ! सव्वत्थोवा परिमंडलसंगणा दव्वट्ठयाए वट्टा संठाणा दवट्टयाए संखेजगुणा चउरंसा संठाणा दव्वट्टयाए संखेजगुणा तंसा संगणा दबट्टयाए संखेजगुणा श्रायतसंगणा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा अणित्थंथा संठाणा दवट्टयाए असंखेजगुणा,