________________ श्रीमव्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 20 :: उद्देशकः 7 ] [ 635 जे भविए घणवायतणुवाए घणवायतणुवायवलएसु वाउकाइयत्ताए उववजितए सेसं तं चेव जाव से तेणढणं जाव उबवज्जेजा 2 / सेवं भंते 2 त्ति जाव विहरति 3 // सूत्रं 673 // ( वाचनान्तराभिप्रायेण तु पृथिव्यवायुविषयत्वादुद्दे शकत्रयमिदमतोऽष्टमः // 8 // ) // इति विंशतितमशतके षष्ठ उद्देशकः // 20-6 // // अथ विंशतितमशतके बन्धाख्य-सप्तमोद्दशकः // - कइविहे णं भंते ! बंधे पन्नत्ते ?, गोयमा ! तिविहे पन्नत्ते, तंजहाजीवप्पयोगबंधे अणंतरपयोगबंधे परंपरबंधे 1 / नेरइयाणं भंते ! कइविहे बंधे पन्नत्ते ? एवं चेव, एवं जाव वेमाणियाणं 2 / नाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे पन्नते ?, गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नत्ते, तंजहा-जीवप्पयोगबंधे अणंतरबंधे परंपरबंधे 3 / नेरइयाणं भंते ! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कइविहे बंधे पन्नत्ते, एवं चेव जाव वेमाणियाणं, एवं जाव अंतराइयस्स 4 / णाणावरणिजोदयस्त णं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे पन्नत्ते ?, गोयमा! तिविहे बंधे पन्नत्ते, एवं चेव एवं नेरइयाणवि एवं जाव वेमाणियाणं, एवं जाव अंतराइउदयस्स 5 / इस्थीवेदस्स णं भंते ! कइविहे बंधे पन्नत्ते ?, गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नत्ते, एवं चेव 6 / असुरकुमाराणं भंते ! इत्थीवेदस्स कतिविहे बंधे पन्नत्ते?, गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नत्ते, एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स इथिवेदो अस्थि, एवं पुरिसवेदस्सवि एवं नपुंसगवेदस्सवि, एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स जो अत्थि वेदो 7 / दंसणमोहणिजस्स णं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे पन्नत्ते ?, एवं चेव निरंतरं जाव वेमाणियाणं, एवं चरित्तमोहणिजस्सवि जाव वेमाणियाणं, एवं एएणं कमेणं बोरालियसरीरस्स जाव कम्मगसरीरस्स श्राहारसन्नाए जाव परिग्गहसन्नाए, कराहलेसाए जाद पुक्कलेसाए, सम्मदिट्ठीए मिच्छा