________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतकं 18 :: उद्देशकः 10 ] [ 566 31 वत्थी भंते ! वाउयाएणं फुडे वाउयाए वत्थिणा फुडे ?, गोयमा ! वत्थी वाउयाएणं फुडे नो वाउयाए वस्थिणा फुडे 4 // सूत्र 644 // अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पनाए पुढविए अहे दव्वाइं वन्नयो काल-नील-लोहियहालिद्द-सुकिल्लाई, गंधयो सुब्भिगंधाई दुन्भिगंधाई, रसश्रो तित्त-कडुय-कसायअंबिल-महुराई फासयो कक्खड-मउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाई अन्नमनबद्धाइं अन्नमनपुट्ठाई अन्नमन्नयोगाढाई (अन्नमन्नबद्ध पुट्ठाई) अन्नमनघडताए चिट्ठति ?, हंता अस्थि, एवं जाव अहेसत्तमाए 1 / अस्थि णं भंते ! सोहम्मस्स कप्पस्त अहे एवं चेव एवं जाव ईसिपभाराए पुढविए 2 / सेवं भंते ! 2 जाव विहरइ 3 / तए णं समणे भगवं महावीरे जाव बहिया जणवयविहारं विहरति 4 // सूत्रं 645 // ते णं काले णं 2 वाणियग्गामे नाम नगरे होत्था वन्नयो, दूतिपलासए चेतिए वन्नयो 1 / तत्थ णं वाणियग्गामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्डे जाव अपरिभूए रिउव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए पंचराहं खंडियसवाणं सयस्स य कुडुबस्स आहेवच्चं जाव विहरति 2 / तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जु. वासति 3 / तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पजित्था एवं खलु समणे णायपुत्ते पुव्वाणुपुब्बिं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे इहमागए जाव दूतिपलासए चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ 4 / तं गच्छामि णं समणस्स नायपुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामि इमाइं च णं एयाख्वाइं अट्ठाई जाव वागरणाई पुच्छिस्सामि, तं जइ इमे से इमाइं एयाख्वाइं अट्ठाई जाव वागरणाई वागरेहिति ततो णं वंदीहामि नमसीहामि जाव पन्जुवासीहामि, अहमेयं से इमाइं अट्ठाई जाव वागरणाई नो वागरेहिति तो णं एएहिं चेव अट्ठहि य जाव वागरणेहि य निप्पट्ठपसिणवागरणं करेस्सामीतिकटु एवं संपेहेइ 2 राहाए जाव सरीरे सानो गिहारो पडिनिवखमति 2 पायविहारचारेणं एगेणं