________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं : शतकं 18 :: उद्देशकः 8.6] [ 567 गतिए जाणति न पासई 3 अत्थेगतिया न जाणइ न पासति 4, 4 / श्राहोहिए णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं जहा छउमत्थे एवं याहोहिएवि जाव श्रणंतपदेसियं, परमाहोहिए णं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणति तं समयं पासति जं समयं पासति तं समयं जाणति ?, णो तिण8 समढे 5 / से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ परमाहोहिए णं मासे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणति नो तं समयं पासति जं समयं पासति नो तं समयं जाणति ?, गोयमा ! सागारे से नाणे भवइ अणगारे से दंसणे भवइ, से तेणटेणं जाव नो तं समयं जाणति एवं जाव अणंतपदेसियं 6 / केवली णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं जहा परमाहोहिए तहा केवलीवि जाव अणंतपएसियं 7 / सेवं भंते 2 त्ति जाव विहरति // सूत्रं 641 // - // इति अष्टादशमशतके अष्टम उद्देशकः // 18-8 // // अथ अष्टादशमशतके भव्याख्य-जवमोद्देशकः // रायगिहे जाव एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! भवियदव्वनेरइया 21, हंता अस्थि 1 / से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ भवियदव्वनेरइया 2 ?, जे भविए पंचिंदिए तिरिक्खज़ोणिए वा मणुस्से वा नेरइएसु उववजित्तए, से तेणटेणं जाव भवियदव्वनेरइया 2, 2 / एवं जाव थणियकुमारा 3 / अत्थि णं भंते ! भवियदव्वपुढविकाइया 2 ?, हंता अस्थि 4 / से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ भवियदव्वपुढविकाइया 2 ? गोयमा ! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उववज्जति, से तेणटेणं भंते ! एवं वुचइ भवियदव्यपुढविकाइया 2, 5 / श्राउकाइय-वणस्सइकाइयाणं एवं चेव उववायो, तेउ-बाऊ-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाण य जे भविए तिरिक्खजोणिए मणुस्से वा, पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं जे भविए नेरइए वा तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिए वा,