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________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवति) सूत्रं :: शतकं 18 :, उद्देशकः 7 ] [586 एवं चउपएसिएवि नवरं सिय एगवन्ने जाव सिय चउवन्ने, एवं रसेसुवि सेसं तं चेव 41 एवं पंचपएसिएवि, नवरं सिय एगवन्ने जाव सिय पंचवन्ने, एवं रसेसुवि गंधफासा तहेव, जहा पंचपएसियो एवं जाव असंखेजपएसियो 5 / सुहुमपरिणए णं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कतिवन्ने जहा पंचपएसिए तहेव निरवसेसं 6 / बादरपरिणए णं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कतिवन्ने पुच्छा, गोयमा ! सिय एगवन्ने जाव सिय पंचवन्ने सिय एगगंधे सिय दुगंधे सिय एगरसे जाव सिय पंचरसे सिय चउफासे जाव सिय अठ्ठफासे पन्नते 7 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरति 8 // सूत्रं 631 // // इति अष्टादशमशतके षष्ठ उद्देशकः // 18-6 // // अथ अष्टादशमशतके केवलिनामक-सप्तमोद्देशकः // रायगिहे जाव एवं वयासी-अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइवखंति जाव पस्वेति-एवं खलु केवली जक्खाएसेणं श्राइस्सइ एवं खलु केवली जक्खाएसेणं याति? समाणे याहच दो भासायो भासति, तंजहा-मोसं वा सच्चामोसं वा 1 / से कहमेयं भंते ! एवं गोयमा ! जगणं ते अन्नउत्थिया जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहिंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि ४-नो खलु केवली जक्खाएसेणं प्राइस्सति, नो खलु केवली जक्खाएसेणं श्राति? समाणे शाहच दो भासायोभासति, तंजहा-मोसंवा सच्चामोसं वा, केवली णं असावजायो अपरोवघाइयायो याहच्च दो भासायो भासति, तंजहा-सच्चं वा असच्चामोसं वा 2 // सूत्रं 632 // कतिविहे णं भंते ! उवही पराणत्ते ?, गोयमा ! तिविहे उवही पन्नत्ते, तंजहा-कम्मोवही सरीरोवही बाहिरभंडमत्तोवगरणोवही 1 / नेरइयाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! दुविहे उवही पन्नत्ते, तंजहा-कम्मोवही य सरीरोवही य, सेसाणं तिविहा उवही एगिदियवजाणं जाव वेमाणियाणं 2 / एगिदियाणं दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-कम्मोवही य सरीरोवही य,
SR No.004364
Book TitleAgam Sudha Sindhu Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendravijay Gani
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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