________________ श्रीमव्याख्याप्रज्ञप्ति (धीमद्भगवति) सूत्र :: शतकं 18 / उद्देशकः 5 / [587 अमायिसम्मदिट्ठियबन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव 1 / दो भंते ! असुरकुमारा एवं चेव एवं एगिदियविगलिंदियवज्जं जाव वेमाणिया 2 // सूत्रं 627 // नेरइए णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिएसु उववजित्तए से णं भंते ! कयरं श्राउयं पडिसंवेदेति ?, गोयमा ! नेरइयाउयं पडिसंवेदेति पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाउए से पुरयो कडे चिट्ठति, एवं मणुस्सेसुवि, नवरं मणुस्साउए से पुरयो कडे चिटुइ 1 / असुरकुमारा णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पुढविकाइएसु उववजित्तए पुच्छा, गोयमा ! असुरकुमाराउयं पडिसंवेदेति पुदविकाइयाउए से पुरषो कडे चिट्टइ 2 / एवं जो जहि भविश्रो उववजित्तए तस्स तं पुरयो कडं चिट्ठति, जत्थ ठियो तं पडिसंवेदेति जाव वेमाणिए, नवरं पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जति पुढविकाइयाउयं पडिसंवेएति अन्ने य से पुढविकाइयाउए पुरयो कडे चिट्ठति, एवं जाव मणुस्सो सट्ठाणे उववाएव्वो परट्ठाणे तहेव 3 // सूत्र 628 // दो भंते ! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमार-देवत्ताए उववन्ना तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउविस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ वंकं विउव्विस्सामीति वंकं विउब्बइ जं जहा इच्छइ तं तहा विउव्वइ एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउविस्सामीति वंकं विउव्वइ वंक विउव्विस्सामीति उज्जयं विउव्वइ जं जहा इच्छति णो तं तहा विउव्वइ से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा ! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगा य अमायिसम्मट्ठिीउववनगा य, तत्थ णं जे से मायिमिच्छादिट्ठिज्ववन्नए असुरकुमारे देवे से णं उज्जुयं विउबिस्सामीति वकं विउव्वति जाव णो तं तहा विउब्वइ, तत्थ णं जे से अमायिसम्मदिट्टिउववन्नए असुरकुमारे देवे से उज्जुयं विउव्वइ जाव तं तहा विउव्वइ 1 / दो भंते ! नागकुमारा एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारा, वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया एवं चेव 2 /